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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५६ : उस करुण दृश्य से द्रवित होकर आपने 'विधवा का कर्तव्य' विषय पर विशद और सारगर्भित प्रवचन दिया। करेड़ा के ठाकुर साहब के आग्रह पर आपने राजमहल में व्याख्यान फरमाया । राजमाता ने रात्रिभोजन का त्याग किया और रानीजी ने सम्यक्त्व ग्रहण किया। दास-दासियों ने भी मांसमदिरा-त्याग आदि कई प्रकार के नियम लिए । ठाकुर साहब उम्मेदसिंहजी ने भी महीने में २२ दिन शिकार न खेलने का नियम लिया और तालाबों से मछलियाँ मारने का निषेध कर दिया। उन्होंने यह प्रतिज्ञा भी ली कि वर्ष में जितने भी बकरे राज्य में आएंगे सबको अभयदान दंगा। __ थाणा के ठाकुर साहब ने पक्षियों की शिकार का त्याग किया । गोदाजी के गाँव में रावत लोगों ने मदिरा-मांस का त्याग किया। लसाणी के ठाकुर साहब खुमाणसिंहजी ने चैत्र शुक्ला १३ के दिन किसी भी प्राणी को न मारने, मादा जानवर को कभी भी न मारने और भाद्रपद मास में शिकार न करने की प्रतिज्ञा ली। साथ ही निरपराधी जीव को कभी भी न मारने का नियम लिया।। तदनन्तर आप देवगढ़ की ओर प्रस्थित हुए तो ठाकुर खुमाणसिंहजी अपने युवराज कुमार के साथ रियासत की सीमा तक पहुंचाने आये । इसके बाद आपश्री घाणेराव (सादड़ी) पधारे और चातुर्मास करने लगे। एक दिन मन्दिरमार्गी-सम्प्रदाय की आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी के सुयोग्य मुनीम श्री भगवानलालजी आपकी सेवा में उपस्थित हुए और गाँव के बाहर माता के मन्दिर में प्रतिवर्ष होने . वाली पाड़ा (भैंस का बच्चा) की बलि बन्द करवाने की प्रार्थना की। स्थानकवासी और मन्दिरमार्गी दोनों संघ के सज्जनों के प्रयत्न एवं महाराजश्री के प्रभाव से वह बलि बन्द हो गई। इस चातुर्मास में तपस्वी मुनि मयाचन्दजी महाराज ने ३६ दिन की तपस्या की । पूर्णाहूति के दिन अनेक नगरों के सैकड़ों नर-नारियों ने दर्शन और प्रवचन का लाम लिया एवं गरीबों मिठाई और वस्त्र दान दिये गये। पर्युषण के पावन दिवस में फतहपुर के ठाकुर साहब ने प्रवचन लाम लिया । कई अर्जन भाइयों ने उपवासादि किये और मांस-मदिरा तम्बाकू पीने आदि के त्याग किये। एक दिन बूसी (मारवाड़) के ठाकूर साहब व्याख्यान सूनने आये । उन्होंने हरिण और पक्षियों का शिकार बिल्कुल न करने और महीने में १० दिन शिकार न करने का नियम लिया। सादड़ी (मारवाड़) का श्री संघ सम्पन्न और धर्मप्रेमी है । चातुर्मास में गुरुदेव की सेवा का बहुत लाभ लिया एवं स्वधर्मी बन्धुओं की प्रेमपूर्वक सेवा की। तीसवाँ चातुर्मास (सं० १९८२) : ज्यावर घाणेराव (सादड़ी) का चातुर्मास पूर्ण कर आपश्री वाली, खीमेल आदि स्थानों पर विचरण करते हुए पाली पधारे। यहाँ जोधपुर से कैप्टेन केसरीसिंहजी देवड़ा, जागीरदार गलथनी (मारवाड़) और ब्रह्मचारी लाल जी, ठाकुर लालसिंहजी, कँवर कुचामण, व जगदीश सिंह जी गहलोत आदि ने दर्शन प्रवचन का लाभ लिया। कैप्टन साहब ने कहा-"सं० १९७३ में जोधपुर में कुचामण की हवेली में आपके उपदेश सुने थे, आपके प्रवचन रूप समुद्र में से अहिंसा के मोती लेकर जागीरी ठिकाणों और अन्य लोगों में दारू-मांस के त्याग का प्रचार कर रहा हूँ। वह अहिंसा के मोती लुटाने में मुझे बहुत सफलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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