SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५४: हआ। कोठी शहर से दो मील दूर थी, फिर भी जनता बहुत बड़ी संख्या में आई। दो व्याख्यान और देने का आग्रह करने पर आपश्री ने स्वीकृति दी । लाला जुगमन्दिरलालजी जैनी, दानवीर सर सेठ हुक्मचंदजी, राय बहादुर सेठ कस्तूरचन्दजी, श्री नेमिचन्दजी भंवरलालजी आदि सभी दिगम्बर जैन भाई सम्पन्न थे, फिर भी उनमें धर्म के प्रति अच्छा प्रेम था। व्याख्यान सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। कहने लगे "आप जैसे २-४ उपदेशक भारत में हो जायें तो जन जाति की उन्नति होने में कोई देर नहीं लगे।" सर सेठ हुक्मचन्द जी ने अपने दशलाक्षणी पर्व के व्याख्यानों में एक बार जनता से कहा था "मेरे बोलने का आप लोगों पर असर नहीं हो सकता, क्योंकि आप भी भोगी मैं भी भोगी। असर होता है त्यागियों का। मैंने एक व्याख्यान श्री चौथमलजी महाराज का सुना है, जन्मभर नहीं भूलूंगा। स्कंधक मुनि की कथा मेरे हृदय में बस गई है । दो-चार व्याख्यान और उनके सुन लूं तो मुझे मुनि ही बनना पड़े।" महाराजश्री का प्रवचन सुनने के लिए कुशलगढ़ के राव रणजीतसिंहजी इन्दौर आए। कुशलगढ़ में पधारने और अपने उपदेशामृत से जनता का कल्याण करने की प्रार्थना की। उन्तीसवाँ चातुर्मास (सं० १९८१) : घाणेराव सादड़ी इन्दौर से चातुर्मास पूर्ण करके आप हातोद की ओर प्रस्थित हुए किन्तु मार्ग में ही देवास का श्री संघ मिल गया । अत्यधिक आग्रह के कारण आपके चरण देवास की ओर मुड़ गए । देवास में 'गौरक्षा' और 'विद्या' विषय पर व्याख्यान हुए। देवास से उन्हेल पधारे तो वहाँ के जागीरदार ने मुसलमान होते हुए भी प्रवचन लाम लिया और अपनी सीमा में किसी को भी जीव न मारने देने की प्रतिज्ञा की। अनेक लोगों का अपने प्रवचन-पीयूष से हृदय परिवर्तन करते हए भीलवाड़ा पधारे। यहां अनेक संत एकत्र हुए। महावीर जयंती का उत्सव उत्साहपूर्वक मनाया गया । यहीं सादड़ी (मारवाड़) के श्री संघ ने चातुर्मास के लिए प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई । यहाँ से आप बनेड़ा पधारे । बनेड़ा-नरेश अमरसिंहजी आपका प्रवचन सुनने आये। प्रभावित होकर नजरबाग में व्याख्यान देने का आग्रह किया जिससे राज-परिवार की महिलाएं भी लाभ ले सकें। नजरबाग में प्रवचन होने के बाद बनेड़ा नरेश ने जिज्ञासा प्रगट की "महाराज ! क्या जैनधर्म, बौद्धधर्म की शाखा है ?" महाराजश्री ने समझाया "जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा नहीं है; अपितु एक स्वतन्त्र धर्म है । बौद्धधर्म का प्रारम्भ कुल ढाई हजार वर्ष पहले हुआ है । इसके आद्य प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे, जबकि जैनधर्म अनादि है । इस अवसर्पिणी काल में इसके आद्य प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव थे जिनके काल की गणना वर्षों में नहीं हो सकती। असंख्य वर्ष हो गए हैं उन्हें । चौबीसवें तीर्थंकर महावीर और महात्मा बुद्ध अवश्य समकालीन थे, लेकिन दोनों धर्मों की आचार-विचार पद्धति में अन्तर रहा । स्वयं बुद्ध भी तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा में पहले दीक्षित हुए थे लेकिन श्रमणचर्या के कठोर नियमों का पालन न कर सकने के कारण अलग हो गए और अपना मध्यम मार्ग खोज निकाला। इस प्रकार जैनधर्म बौद्धधर्म की अपेक्षा बहत प्राचीन है।" नरेश ने दूसरा प्रश्न किया २ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy