SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५२ : कारी करली है । मैं आपके नियमों के अनुसार ही भिक्षा दूंगा।" दूसरे दिन गुरुदेव गोचरी हेतु पधारे । एक कमरे में भोजन का थाल सजाकर रखा था। गुरुदेव ने कहा-जहाँ भोजन रखा है, हम वहीं जाकर मिक्षा लेंगे। भोजन-गृह में ले जाया गया। महाराजा स्वयं अपने हाथ से दान देना चाहते थे। गुरुदेव ने छोटा पात्र सामने रखा । महाराजा ने कहा-"बड़ा पात्र रखिये। यहाँ भी परिवार बहत है और आपका शिष्य समुदाय भी बड़ा है, फिर संकोच क्यों ?" गुरुदेव-"आवश्यकता से अधिक भोजन लेकर हम क्या करेंगे?" अतः छोटा पात्र ही रखा। महाराज ने अपने हाथ से केसरिया चावल दबा-दबाकर पात्र में भर दिये। गुरुदेव गोचरी लेकर निकले तो महल के द्वार तक महाराजा पहुँचाने के लिए आये। महल के बाहर पहुँचकर महाराजा ने चरणों में मस्तक रखकर नमस्कार किया तो दोनों हाथ धूल से भर गये। गुरुदेवश्री ने कहा-“कच्चे पानी से हाथ न धोना।" महाराजा ने हँसकर नम्रता के साथ कहा-मैंने पहले से ही आपका आचार-विचार मालूम कर लिया है । गर्म पानी भी तैयार है। महल के बाहर निकलते ही बैंड बजने लगा । गुरुदेव ने कहा-यह क्या ? महाराजा-यह लोग आपश्री को सम्मानपूर्वक अपने स्थान तक पहुँचाने आयेंगे। गुरुदेव-हम लोग बाजे के साथ नहीं चलते हैं। महाराजा ने अपने अधिकारियों व बाजे वालों से कहा-आपको वैसे ही स्थान तक पहुँचा आओ। देवास में आपश्री कई दिन विराजे । महाराजा सर तुकोजीराव बापू साहेब पंवार (बड़ी पाति) दीवान राय बहादुर नारायण प्रसाद जी, श्री डी० आर० लहरी एम० ए०, श्री बी० एन० माजेकर वकील, डा. गणपतराव सितोले आदि अनेक सुशिक्षित व्यक्ति गुरुदेवश्री के संपर्क में आये, प्रवचन सुनते । प्रवचन सभा में अपार भीड़ होने लगी। पहले कन्यापाठशाला में प्रवचन होते थे। श्रोताओं की उपस्थिति प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। फिर तुकोजी गंज के मैदान में प्रवचन होने लगे। देवास के घंटाघर और राजवाडे में भी कई व्याख्यान हुए । महाराजा की ओर से बड़े पेड़े की प्रभावना की गई। देवास के मुसलमान भाइयों में भी आपश्री के प्रति अत्यन्त भक्ति जगी। उनकी प्रार्थना पर ईदगाह में आपने प्रवचन दिया। शहर के काजी ताजुद्दीन ने आजीवन मांस-मदिरा-परस्त्रीगमन आदि का त्याग किया । अन्य लोगों ने भी अनेक प्रकार के नियम लिये। देवास से विहार कर आपश्री इन्दौर पधारे । वहाँ की रिवाज के अनुसार सैकड़ों पशुओं का बलिदान होने वाला था। आपश्री को पता चला तो आपने दया व करुणा पर वह हृदयस्पर्शी प्रवचन दिया कि बलिदानकर्ताओं का हृदय पिघल गया। लगभग १५०० पशुओं को जीवन दान मिला। इन्दौर से रतलाम की ओर विहार किया। मार्ग में किसानों के आग्रह से १०-१२ दिन हातोद गाँव में रुकना पड़ा । डेढ़ हजार व्यक्ति प्रवचन में उपस्थित हुए। उन्होंने निम्न नियम लिए। एकादशी और अमावस्या के दिन (१) भड़ जे भाड़ और तेली घानी बन्द रखेंगे। (२) कुम्भकार (कुम्हार) चाक बन्द रखेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy