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________________ :५१: उदय : धर्म-दिवाकर का | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ अनेक स्थानों पर विहार करते हुए आप उज्जैन पधारे । यहाँ मुनि मयाचन्दजी महाराज ने ३३ दिन की तपस्या की। तपस्या की पूर्णाहुति भाद्रपद शुक्ला ६, बुधवार सं० १९७६ (दिनांक ३०-८-१९२२) को हई । इस पावन प्रसंग पर उज्जैन के कपड़े का कारखाना, प्रेस, जीन तथा कसाईखाना बन्द रखे गये। उस समय की ७०००) रु० दैनिक की हानि उठाकर भी जनरल मैनेजर श्री मदनमोहनजी ने मील बन्द रखा। खानसाहब सेठ नजरअली, अल्लावरूश मिल्स के मालिक सेठ लुकमान भाई ने भी अपनी फैक्ट्री बन्द रखी । मुहर्रम का त्यौहार होने पर भी उन्होंने जातिभोज में मीठे चावल बनवाए और १०० बकरों को अभय दिया । यह गुरुदेव के दयामूलक सर्वव्यापी प्रभाव का उदाहरण है। महाराजश्री का अहिंसा पर प्रभावशाली प्रवचन हुआ। इसमें काजी वजरुद्दीन, उस्ताद हसन मियाँ, मौलाना फैज मुहम्मद, इब्राहीम कस्साव जज साहब, मौलवी फाजिल सादुद्दीन हैदर सबजज मी० चौथे, पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट आदि पधारे। जज साहब ने आपके प्रवचन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसका सारांश था। ___ "मैंने बहुत से भाषण, स्पीच वगैरह सुने हैं, लेकिन मुनि चौथमलजी महाराज साहब ने जो व्याख्यान आज हम लोगों को सुनाया है, उसमें बहुत ज्यादा आनन्द आया। वे इज्जत करने लायक हैं । इनकी बातें याद रखना और उन पर अमल करना आप सबका फर्ज है।। ___ "हमारे सामने जो स्वामी जी महाराज (श्री मयारामजी महाराज) बैठे हैं, आपने तेतीस उपवास किये हैं। ख्याल कीजिये कि "३३ उपवास" कहना आसान है, लेकिन करना, कितना मुश्किल है। हम लोगों में ३० रोजे किये जाते हैं, जिसमें रात को खाया जाता है उस पर भी रोजे रखना मुश्किल का मैदान मालम होता है। स्वामीजी ने दिन में सिर्फ गर्म पानी से ही गुजारा किया। रात को वह भी नहीं लिया जाता । आपके धर्म में इसकी मुमानियत है। मैं स्वामीजी का तहेदिल से शक्रिया अदा करता है। मैंने यहाँ आकर यह सुना कि कसाइयों ने ब-रजामंदी खुद बाहमी इत्तिफाक (पारस्परिक मेल) से आज के दिन जानवरों का कत्ल करना व गोश्त बेचना बन्द कर दिया, जिसमें कि सरकार की जानिब से कतई दबाब नहीं किया गया। मुझे इस बात से बहुत ही खुशी हासिल हुई। सरकार तो चोर, पापी, अन्यायी, दुराचारी आदि को चोरी, पाप, अन्याय और दुराचरण करने पर पकड़ कर दंड देती है, लेकिन उससे उतना सुधार नहीं होता जितना स्वामीजी के व्याख्यान से।" इसके पश्चात् मौलाना याद अली साहब ने सभा में खड़े होकर जाहिर किया कि स्वामीजी महाराज के व्याख्यान की तारीफ करने के लिए मेरे पास अल्फाज नहीं हैं। दूसरे दिन तीन सौ अपाहिजों को भोजन कराया गया। अट्ठाइसवाँ चातुर्मास (सं० १९८०) : इन्दौर उज्जैन चातुर्मास पूर्ण करके आपश्री देवास पधारे । देवास के महाराज सर मल्हारराव पंवार (छोटी पांती) ने गुरुदेवश्री की बहुत सेवा-भक्ति की। प्रवचन आदि सुने।। एक दिन महाराजा मल्हारराव के मन में गुरुदेव को आहार-पानी देने का विचार आया। महाराजा ने अपने मन की बात गुरुदेवश्री से कही। गुरुदेव ने कहा-जैन मुनियों की गोचरी के कुछ विशेष नियम हैं । दोष टालकर अपने नियमों के अनुसार ही आहार-पानी ले सकते हैं।' महाराजा ने कहा- "मेरा प्राइवेट सेक्रेटरी जैन है । मैंने जैन मुनियों के नियमों की जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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