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________________ || श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ :४६ : उदय : धर्म-दिवाकर का महाराजश्री उनकी श्रद्धा से गद्गद हो गये । किन्तु भेंट अस्वीकार करते हुए बोले"मेंट तो हम लेते नहीं।" । आदिवासी का दिल बैठने लगा। महाराजश्री ने कहा "तुम यदि कुछ देना ही चाहते हो तो आज से जीवन-भर के लिए शिकार, पशु-बलि, मांस और मदिरा छोड़ दो। क्या तुम इतना कर सकोगे ?" "क्यों नहीं कर सकेंगे, बापजी ! आपने हमारे बेटे की जान बचाई तो हम भी सभी प्राणियों की प्राण-रक्षा करेंगे।" आदिवासी दम्पति ने निष्ठापूर्वक प्रतिज्ञा-पालन का वचन दिया। ___ सत्ताईसवां चातुर्मास (सं० १९७६) : उज्जैन रतलाम से विचरण करते हुए आप सारंगी पधारे। वहाँ के ठाकुरसाहब जोरावरसिंहजी ने बहुत भक्ति-भाव प्रदर्शित किया। आपने 'पर-स्त्री-गमन निषेध' पर एक प्रभावशाली प्रवचन दिया। सुनकर लोगों ने 'पर-स्त्री-त्याग' का नियम लिया। इसके बाद 'अहिंसा परमो धर्म:' पर आपका ओजस्वी प्रवचन हआ । अहिंसा की धारा बहने लगी। ठाकुर साहब ने अपनी रियासत में मछलियाँ मारने तथा शिकार करने की पाबन्दी (सभी धार्मिक तिथियों, एकादशी, पूनम, अमावस्या जन्माष्टमी, रामनवमी और पर्दूषण के दिनों में) लगा दी। - इसके बाद ठाकुर जोरावरसिंहजी मिगसर बदी का लिखा एक पत्र आया । उसमें क्षमा प्रार्थना करते हुए लिखा था कि “मैंने परस्त्रीगमन न करने का नियम नहीं लिया था उसका कारण यह था कि क्षत्रिय धर्म में परस्त्रीगमन वैसे ही निषेध है। तथा यह विरद रजपूत प्रथम, मुख झूठ न बोले । यह विरद रजपूत, काछ परत्रिय नहिं खोले । यह विरद रजपूत, दान देकर कर जोरे। यह विरद रजपूत, मार अरियाँ दल मोरे ।। जमराज पाँव पाछा धरे, देखि मतो अवधूत रो। करतार हाथ दीधी करद, यह विरद रजपूत रो ।। मैं इस कवित्त (छप्पय) को सदा स्मरण रखते हुए अपना जीवनयापन करता हूँ।" राजमहल की स्त्रियों तथा अन्य महिलाओं ने भी विविध प्रकार के नियम लिए। विहार करते हुए आप राजगढ़ पधारे। आपके प्रवचनों को सुनकर मुसलमान भाई भी कहने लगे कि 'ऐसा मालूम पड़ता है कि इन्हें खुदा ने ही भेजा है।' तीस बुनकरों ने मांस-मदिरा का त्याग किया। अनुपम इकरारनामा धारानगरी से आप केसूरग्राम पधारे। उस समय सैलाना, महीदपुर, उज्जैन, रतलाम आदि ६० क्षेत्रों के चमार गंगाजलोत्सव पर केसूरग्राम में एकत्र हुए थे। इनमें मदिरापान की कटेव सदियों से जड़ जमाए हुए थी। कुछ सुधार प्रेमी श्रावकों ने आपश्री से निवेदन किया "महाराज ! हमें तो अनुग्रह करके आप उपदेश फरमाते ही हैं। यदि चर्मकार बस्ती में पधार कर इन चर्मकारों को भी सदुपदेश दें तो इनका भी उद्धार हो जायेगा। इन्हें आपके सदुपदेश की सख्त आवश्यकता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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