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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ४० : कुमारपाल की कर्तव्य बुद्धि जागृत हो गई। तत्काल उन्होंने राजकोष से कई करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ व्यय करके निर्धन विधवाओं की सहायता की घोषणा कर दी। संतों और सत्पुरुषों के जीवन में ऐसे प्रसंग आते रहते हैं और उनकी प्रेरणा से लोकोपकार होता है। पालणपुर चातुर्मास पूर्ण करके आपश्री धानेरा में पधारे। वहाँ के हाकिम ने आपका बहुत स्वागत किया। वहाँ पालनपुर के नवाब शमशेर खा बहादुर के दामाद जवर्दस्तखाँ का निवास था। वे आपश्री की सेवा में उपस्थित हुए। प्रवचन सुनकर इतने प्रभावित हुए कि कई जाति के पशुओं की हिंसा न करने की प्रतिज्ञा ली। वहाँ से विचरण करके बालोत्तरा पधारे। उस समय तक वहाँ के निवासी सभा की स्थापना, उसके संचालन के नियमों आदि बातों के जानकार नहीं थे। धर्मक्रियाएँ करने, प्रवचन सुनने आदि तक ही उनका धार्मिक जीवन सीमित था। आपने अपने प्रवचन में सब बातों पर प्रकाश डाला । वहाँ 'जैन मंडल' की स्थापना हुई। इक्कीसवाँ चातुर्मास (सं० १९७३) : जोधपुर बालोतरा से आप जोधपुर पधारे। वहाँ खूटे की पोल में ठहरकर श्री शंभुलालजी कायस्थ के नोहरे में व्याख्यान दिया। स्थान की तंगी से अन्य स्थान पर व्याख्यान होने लगे। वहाँ के निवासी प्रवचनों से इतने प्रभावित हुए कि चातुर्मास की पुरजोर प्रार्थना करने लगे । महावीर जयन्ती का उत्सव बड़े उत्साहपूर्वक मनाया गया। लोगों ने जब चातुर्मास का अधिक आग्रह किया तो आपने फरमाया-'मेरे गुरुदेव पाली में विराजमान हैं। उनकी आज्ञा चाहिए।' लोग पाली जाकर गुरुदेव की आज्ञा भी ले आए। कुछ दिन इधर-उधर विहार करके आप जोधपुर लौट आए। अन्य संत भी वहाँ आ गए। आऊवा की हवेली में सभी संत ठहरे । उसी के चौक में प्रवचन होने लगे। शीघ्र ही श्रोताओं की संख्या बढ़ गई और वह स्थान छोटा पड़ने लगा। जैन और जैनेतर सभी प्रवचन में आते। सरकारी कर्मचारियों के सरसामान खाता के दरोगा श्रीयुत नानुरामजी माली ने कुचामन की हवेली में प्रवचन का प्रबन्ध किया। महाराज श्रीविजय सिंहजी साहेब; रायबहादुर पं० श्यामबिहारी मिश्र, रेवेन्यू मेम्बर, रीजेन्सी काउन्सिल; रायसाहेब लक्ष्मणदास जी चीफ जज आदि उपस्थित हुए। इस पर्युषण में बहुत तपस्याएं हुईं। जैनों के अतिरिक्त अजनों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। लगातार आठ-आठ दिन का उपवास किया। बाईसवाँ चातुर्मास (सं० १९७४) : अजमेर जोधपुर चातुर्मास पूर्ण करके आप पाली की ओर प्रस्थित हुए क्योंकि वहाँ आपके गुरुदेव चातुर्मास कर रहे थे। उनका स्वास्थ्य भी ठीक न था। कुछ दिन गुरु-सेवा में रत रहे । जब उनका स्वास्थ्य ठीक हो गया तो उनकी आज्ञा लेकर विहार किया और अनेक स्थलों पर विचरण करते हुए ब्यावर पधारे। वहाँ आपके गुरुदेव आशुकवि हीरालालजी महाराज पहले ही पहुंच चुके थे। वयोवृद्ध मुनिश्री नन्दलालजी महाराज भी विराजमान थे। वहाँ का जैन समाज कई सम्प्रदायों में विभक्त था । देशभक्त सेठ दामोदरदासजी राठी ने आपके प्रवचन सनातन धर्म हाईस्कूल में कराए। आपने 'प्रेम और एकता' पर ऐसा सारगभित तथा ओजस्वी भाषण दिया कि एकता की प्रचण्ड लहर फैल गई। हैडमास्टर ने प्रभावित होकर दूसरा व्याख्यान कराया। इसी समय अजमेर श्रीसंघ ने आपको आग्रहपूर्वक बुलाया । आप अजमेर पधारे। प्रवचन सुनकर सभी प्रभावित हुए । राय बहादुर छगनमलजी, दीवान बहादुर उम्मेदमलजी लोढ़ा, मगनमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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