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________________ || श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ | उदार सहयोगियों की सूची : ५९६ : श्रीमान सूरजभान जी जैन, हांसीवाले आप हांसी के प्रसिद्ध श्रावक श्रीमान मुन्नालाल जी जैन के सुपुत्र हैं। बड़े ही सरल स्वभाव के उदार हृदय सज्जन हैं। गरीब-असहाय व्यक्तियों की सेवा के लिए आप सदा कुछ न कुछ करते रहते हैं । प्रतिमास अपनी आय में से कुछ अंश गरीब असहायों की सेवा में तथा गुप्तदान में खर्च करते हैं । अपनी जन्मभूमि हांसी में भी अस्पताल में बीमारों को बांटने के लिए प्रतिमास दवाइयां भी भेजते रहते हैं। श्री सूरजभान जी के सुपुत्र श्री प्रेमचन्दजी भी बड़े धर्मप्रेमी उत्साही है। आप देहली (चाँदनी चौक) में कपड़े का व्यापार करते हैं। श्रीमती प्रेमवती पारख, दिल्ली दानवीर समाजसेवी श्रीमान रतनलालजी पारख देहली के स्थानकवासी जैन समाज के एक सुप्रतिष्ठित व्यक्ति थे। आप बड़े ही धार्मिक, शिक्षाप्रेमी तथा उदार हृदय थे। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमवती पारख भी आपकी भांति ही धार्मिक, उदार हृदया और सरल स्वभाव की हैं। दान-क्षमा आदि कार्यों में विशेष रुचि रखती हैं। आपने अठाई तप तक तपश्चरण भी किया है। अपनी सन्तानों में धार्मिक संस्कार भरने में भी आप बड़ी निपुण सिद्ध हुई हैं। आपके सुपुत्र-श्री महताबचन्द जी व्यवसाय करते हैं, तथा श्री सिताबचन्द जी डाक्टर हैं। सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में सदा सहयोग करते रहते हैं। श्री प्रेमवती जी ने स्व० श्रीमान रतनलाल जी की स्मृति में प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशन में सहयोग दिया है। सौ० श्रीमती प्रेमलता तातेड़, दिल्ली आप श्रीमान चन्दनमलजी तातेड़ की धर्मपत्नी हैं। तथा देहली के प्रसिद्ध श्रावक श्रीमान गोपालचन्द जी तातेड़ की पुत्रवधू हैं। श्रीमान चन्दनमल जी बड़े ही उत्साही समाज सेवी और उदार हृदय हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमलता बहन अभी ३३ वर्ष की आयु होते हुए भी बड़ी धर्मात्मा और तपस्या में विशेष रुचि रखती हैं। इस वर्ष आपका मासखमण (३१ दिन का उपवास) करने का विचार था। आप बम्बई गई, वहाँ तपस्या प्रारम्भ भी कर दी, पर अचानक आपको पारणा करना पड़ा। देहली आकर पुनः तपस्या की। ४ नवम्बर को मासखमण का पारणा हुआ। श्री जैन दिवाकर स्मृतिग्रन्थ में आपने अच्छा सहयोग दिया है। श्रीमान गोपालचन्द जी तातेड, दिल्ली आप स्व० श्रीमान कल्लूमल जी तातेड़ के सुपुत्र हैं। आप बड़े ही धर्मज्ञ, कष्ट-सहिष्णु और साधु-सन्तों की सेवा करने वाले श्रावक हैं। आपकी धर्मपत्नी सौ. इन्द्रादेवी भी बड़ी धर्मात्मा, तपस्यानुरागिणी है । आप बीमारी में भी धर्म-ध्यान, त्याग-प्रत्याख्यान करके मन को धर्म में लगाये रखते हैं तथा वेदना को बड़े समभावपूर्वक सहन करते हैं। तपस्वीरत्न खादीधारी श्री गणेशमल जी महाराज के चरणों में आपकी अत्यन्त भक्ति थी। सौ० इन्द्रादेवी जी ने वर्षीतप, एकान्तर तप, आदि तपस्याएं की हैं। आपके तीन सुपत्र हैं-श्री खूबचन्द जी, श्री चन्दनमल जी तथा श्री सन्तोषचन्द जी और दो सुपुत्रियां है-सौ० विद्यादेवी सौ० सरलादेवी । देहली में आपका वस्त्र व्यवसाय है । समय-समय पर समाज सेवा भी करते रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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