SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ || उदार सहयोगियों की सूची : ५६४ : श्रीमान भैरुसिंहजी जामड़, मदनगंज आप धार्मिक प्रवृत्ति के उदार और परोपकारी सज्जन हैं। मदनगंज के जैन समाज में तथा व्यापारिक क्षेत्र में आपका अच्छा स्थान है। धर्म एवं समाज सेवा के क्षेत्र में आपका अच्छा स्थान है। धर्म एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में आप सदा सहयोग देते रहते हैं। आपका जन्म वि. सं. १९८७ में श्रीमान पृथ्वीराज जी जामड़ के घर श्रीमती धापूबाई की कुक्षि से हआ। आप चार भाई व दो बहिनें है। सभी सुखी सम्पन्न व सुसंस्कारी है। श्रीयुत गुलाबचन्द जी जैन, दिल्ली आपश्री जैन दिवाकर जी महाराज के अनन्य भक्तों में से एक है। जब श्री दिवाकर जी महाराज का दिल्ली में चातुर्मास हुआ तब आपने बड़ी श्रद्धा और तत्परता के साथ उनकी सेवा की थी । आपकी कार्यक्षमता देखकर स्व० उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज ने जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति रतलाम तथा जैनोदय प्रिंटिंग प्रेस, रतलाम का कार्यभार संभालने की प्रेरणा दी। उनकी कृपा से आपने यह कार्य सुचारु रूप से चलाया। तथा श्री गुरुदेव के प्रवचन-श्रवण तथा सान्निध्य का भी काफी सुअवसर आया। ___ आप देहली निवासी स्व. श्री मिलापचन्दजी पारख के सुपुत्र हैं। अच्छे सुशिक्षित हैं तथा सामाजिक व धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचि रखते हैं। देहली में भी आप प्रेस व्यवसाय में संलग्न हैं। आप वेदवाडे में जैन दिवाकर प्रिंटिंग प्रेस के मालिक हैं। सेठ चांदमल जी कोठारी, ब्यावर श्रीमान चांदमल जी कोठारी स्व. श्री जैन दिवाकर जी महाराज के बहुत पहले से ही भक्त रहे हैं। जब कभी भी धर्म एवं समाज सेवा का कार्य सामने आया, आपने प्रसन्नतापूर्वक उसमें सहयोग किया। बम्बई, त्रिचनापल्ली तथा ब्यावर में आपका व्यवसाय है । सन्तों की सेवा तथा धर्म प्रभावना में आप सदा अग्रणी रहते हैं। भाइयों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम और स्नेह सराहनीय है। श्री जैन दिवाकर स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन में आपने उदार सहयोग प्रदान किया है। सेठ हरकचन्द जी बेताला, इन्दौर आपकी जन्म-भूमि डेह (जिला नागौर, राजस्थान) है। प्रारम्भ से ही धार्मिक रुचि रही। व्यवसाय में बड़े दक्ष हैं । आपका इन्दौर व कानपुर में दाल मिल है । सरल तथा मिलनसार स्वभाव के हैं। समय-समय पर सामाजिक व धार्मिक कार्यों में दान करते रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी बहुत तपस्या करती हैं। ८।१०।११।१५ आदि की बड़ी तपस्याएँ भी की हैं। साध-सन्तों की सेवा तथा त्याग प्रत्याख्यान करती रहती हैं। आपके आठ सुपुत्र हैं-श्री बनेचन्द जी, मिश्रीलाल जी, सागरमल जी, सम्पतराज जी, उगमचन्द जी, प्रसन्नचन्द जी (डाक्टर), कैलाशचन्द जी (C. A) व सन्तोष कुमार जी। सभी परिवार.बड़ा संस्कारी व धर्मप्रेमी है। श्री सागरमल जी को धर्मध्यान की विशेष भावना व उत्साह है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy