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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ :५९३ : उदार सहयोगियों की सूची स्व० श्री छुट्टनलाल जी तातेड़, वकील (दिल्ली) की स्मृति में श्रीमान छुट्टनलाल जी तातेड़ बड़े ही मिलनसार शान्त स्वभाव के व्यक्ति थे। साधु-सन्तों की सेवा के लिए आपके मन में विशेष भाव था। श्री जैन दिवाकर जी महाराज के सुशिष्य कवि श्री बंशीलाल जी महाराज जो देहली में रुग्णावस्था में रहे, आपने उनकी सेवा-औषधि आदि की व्यवस्था में बहुत ही ध्यान दिया और भक्तिभाव से सेवा की। समाज सेवा में भी आप सदा अग्रणी रहे । अनेक संस्थाओं के आप पदाधिकारी रहे, उनकी प्रगति में दिलचस्पी ली और स्वयं भी उदारतापूर्वक सहयोग करते रहे । आपके चार पुत्रियां व एक पुत्र है । आपके सुपुत्र श्री सोहनलाल जी तातेड़ भी आपकी तरह समाज सेवा आदि कार्यों में तथा साधु-सतियों की सेवाभक्ति में सदा अग्रणी रहते हैं। श्रीमान मोहनलाल जी तातेड़, दिल्ली आप स्व० श्री कल्लूमल जी तातेड़ के सुपुत्र हैं । स्वभाव से बड़े सरल, नम्र और मिलनसार हैं । धर्मप्रेम भी अच्छा है। कपड़े का अच्छा व्यवसाय है। समाज-सेवा और साधर्मि-सेवा में उदारतापूर्वक दान देते हैं। आपकी धर्मपत्नी सौ० नगीनादेवी जी तपस्विनी श्राविका हैं। श्री मोहनलाल जी के पांच सुपुत्र हैं १. श्री विमलचन्द जी, २. नेमचन्द जी, ३. श्री कुशलचन्द जी, ४. महताबचन्द जी, ५. श्री संजय कुमार तथा सुपुत्री है-अंजु कुमारी। श्री नेमचन्द जी अच्छे सुशिक्षित (चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट) हैं। समाज एवं राष्ट्र-सेवा में सदा आगे रहते हैं । व्यवसाय में बहुत व्यस्त रहते हुए भी आप धार्मिक कार्यों में सहयोग करते रहते हैं। स्वभाव से भी मधुर मिलनसार है। प्रस्तुत स्मृति ग्रन्थ के लिए जन-जन का सहयोग प्राप्त करने में श्री नेमचन्द जी ने बहुत ही श्रम किया है। सौ० नगीनादेवी तातेड़, दिल्ली आप श्रीमान मोहनलाल जी तातेड़ की धर्मपत्नी है। समाज-सेवा, धर्मध्यान, दान और तपस्या में सदा अग्रणी रही है। आपने अपने स्वसुर स्व० श्री कल्लूमल जी तातेड़ एवं सास स्व० श्रीमती सुगनकुंवर जी की काफी सेवा की व धर्म-ध्यान का सहयोग दिया । आपने १ से लेकर ११ उपवास तक की लड़ी की है। वर्ष १९७८ में कविरत्न श्री केवलमुनि जी महाराज के चातुर्मास में कविश्री जी की प्रेरणा से आपने मासखमण की तपस्या बड़े ही आत्मबल और उत्साह के साथ की। समय-समय पर आप अनेक प्रकार के तप-त्याग करती रहती हैं। ___ मासखमण तप की खुशी में जैन दिवाकर स्मृतिग्रन्थ में आपने अच्छा सहयोग प्रदान किया है। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, ताल जिला उदयपुर के अन्तर्गत 'ताल' बड़ा ही सौभाग्यशाली गाँव रहा है । इस गांव ने अनेक श्रमण रत्न प्रदान किये हैं, जैसे-तपस्वी श्री मयाचन्द जी महाराज जिन्होंने स्व० गुरुदेव श्री जैन दिवाकर जी महाराज के सानिध्य में बड़ी-बड़ी आश्चर्यकारक तपस्याएँ की । १ से ४१ तक की लड़ी भी की । तपस्वी श्री नेमीचन्द जी महाराज भी बड़े ही तपस्वी और त्यागी थे। आपने ५४ दिन तक की तपस्याएँ की। बड़े ही गुणवान श्रमण थे । स्वाध्यायी श्री इन्द्रमल जी महाराज जो कई वर्षों से रतलाम में विराजमान हैं, आपने भी इसी ताल को अपने जन्म से कृतार्थ किया है। ताल श्री संघ ने श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन में उदार सहयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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