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________________ | श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।। एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ३२: चित्तौड़ श्रीसंघ तथा युरोपियन भक्त टेलर साहब ने आगामी चातुर्मास चित्तौड़ में ही करने की भावभरी प्रार्थना की। प्रार्थना स्वीकार कर आपने निम्बाहेडो की तर्फ विहार किया। अठारहवां चातुर्मास (सं० १९७०) : चित्तौड़ ___ महाराजश्री निम्बाहेडा से केरी आदि स्थानों पर विचरण करते हुए तारापुर पधारे । वहाँ अठाणा के रावजी साहब का सन्देश मिला कि "आपश्री के प्रवचन बड़े मधुर और रोचक होते हैं। आप यहाँ पधारें।" प्रार्थना स्वीकार करके आप अठाणा पधारे। प्रवचनों का रावजी साहब तथा लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा । राव साहब और अन्य लोगों ने विविध प्रकार के त्याग लिए। वहाँ से आप कई स्थानों पर होते हुए हमीरगढ़ पधारे। हमीरगढ़ में हिन्दू-छीपा बन्धुओं के झगड़े पिछले ३६ वर्ष से चल रहे थे। इन झगड़ों को दूर करने के सभी प्रयत्न विफल हो चुके थे। महाराज श्री ने अपनी ओजस्वी वाणी में प्रवचन दिया। उनके उपदेश से लोगों का हृदय परिवर्तन हुआ। उन्होंने कलह न करने का निर्णय कर लिया। हिन्दू-छीपाओं का झगड़ा समाप्त हो गया। यह था आपकी दिव्य वाणी का अद्भुत प्रभाव । इसके पश्चात् आप चातुर्मास हेतु चित्तौड़ पधारे। प्रवचन-गंगा बहने लगी। जैन-अर्जन, जागीरदार, राजकर्मचारी आदि सभी वाणी का लाभ लेने लगे । वहाँ के ब्राह्मणों का कई वर्षों का वैमनस्य आपके उपदेशों से मिट गया। इसकी खुशी में हाकिम जीवनसिंहजी ने सबको प्रीति भोज दिया । जैन आगम का परमाणु ज्ञान चित्तौड़ के अफीम विभाग के चीफ इंस्पैक्टर एफ. जी. टेखर नाम के यूरोपियन थे। टेलर साहब आपके प्रेमी थे। प्रवचनों में आते और धर्म एवं विज्ञान के बारे में चर्चा किया करते । उन्हें हिन्दी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। विशाल आगम भगवती सूत्र पर आपके प्रवचन चल रहे थे। परमाणु का प्रसंग आ गया। आपने परमाणु का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण फरमाया । टेलर चकित रह गये । वह तो समझते थे कि परमाणु का ज्ञान केवल पश्चिम वालों के ही है। उन्हें स्वप्न में भी आशान थी कि जैन आगमों में परमाणु का इतना सूक्ष्म ज्ञान भरा होगा। विशद और तलस्पर्शी विवेचन सुनकर वह गद्गद हो गये । प्रवचन समाप्त होने पर बोले "महाराज साहब ! आपके ग्रन्थों में एटम (परमाणु) का इतना सूक्ष्म और विस्तृत विवेचन सुनकर मैं दंग रह गया। आप परमाणु ज्ञान का प्रारम्भ कब से मानते हैं ? मनुष्य को सर्वप्रथम यह ज्ञान कब हुआ और किसके द्वारा हुआ? इसे कितना समय बीत गया ?" महाराजश्री ने गम्भीर स्वर में फरमाया "इस ज्ञान को वर्षों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को परमाणु का ज्ञान सर्वप्रथम हुआ। इसको प्राप्त हुए तो असंख्य वर्ष हो गए।" "असंख्य वर्ष ? लेकिन हमारा पश्चिमी जगत तो वैज्ञानिक ज्ञान को ही चार सौ वर्ष पुराना मानता है। इससे पहले तो परमाणु का ज्ञान था ही नहीं।"-टेलर साहब के स्वर में आश्चर्य उभर आया था। __ "यह तो अपनी-अपनी मान्यता है । ज्ञान की अल्पता से ही मनुष्य अपनी मनगढन्त मान्यताएं बना लेता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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