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________________ : ५८१ : उदार सहयोगियों की सूची स्व० श्रीमान नेमीचन्दजी बांठिया, बगड़ी (मारवाड़) स्व० श्रीमान नेमीचन्दजी बांठिया एक मिलनसार, हँसमुख प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले सज्जन थे । आपका जन्म राजस्थान के बगड़ी नगर में १५-१-१६१६ को श्रीमान हीराचन्दजी बांठिया की धर्मपत्नी मातेश्वरी श्री मैनाबाई की कुक्षि से हुआ। युवा होने पर आपका पाणिग्रहण सादड़ी (मारवाड़) निवासी श्रीमान ओटरमलजी कावेडिया की सुपुत्री धर्मानुरागिणी श्री मदनबाई के साथ सम्पन्न हुआ । सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यों में आप दोनों की ही सदा रुचि रही है और उदारतापूर्वक सहयोग भी मिलता रहा है । श्रीमान नेमीचन्दजी का ४४ वर्ष की लघुवय में बगड़ी में अकस्मात् स्वर्गवास हो गया । श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ श्रीमती मदनबाई धर्म में अडिग आस्थावाली बहुत ही उदार और तपस्विनी महिला है । दान और तपस्या दोनों में ही आपकी विशेष रुचि है । मासखमण तप भी आप कर चुकी हैं । आपके भाई श्रीमान पारसमलजी कावेडिया भी बड़े धर्मप्रेमी व उदारहृदय है । आप दानवीर भामाशाह के वंशज हैं । 'एच० नेमीचन्द जैन ज्वेलर्स' ( आरकाट) फर्म का संचालन भी अभी आप ही करते हैं । बहन की धर्म एवं दान - भावना में आप सदा सहयोगी रहते हैं | आपके माताजी, आपकी धर्मपत्नी दोनों ही धर्मानुरागी हैं । बच्चे भी सभी सुसंस्कारी हैं । श्रीमान पारसमलजी ओटरमलजी का वेडिया, आरकाट श्रीमान पारसमलजी कावेडिया सादड़ी (मारवाड़) निवासी हैं वर्तमान में आप आरकाट में सोने-चांदी का व्यापार करते हैं । आप बहुत ही उदार, सरल और धर्मप्रेमी हैं । आपकी माताजी भी बड़ी धर्मात्मा हैं । आपकी धर्मपत्नी बहुत ही धर्मशीला हैं । आपको सुपुत्रियों एवं पुत्रों में धर्म के संस्कार पूर्णतः परिलक्षित होते हैं । आपने धर्मं एवं समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं | सादड़ी (मारवाड़) में जैन स्थानक के उद्घाटन का शुभ कार्य आपके हाथ से ऊँची बोली बोल कर आनन्द सम्पन्न हुआ । अनेक संस्थाओं को भी दान दिया है । आपकी बहिन श्रीमती मदनबाई (धर्मपत्नी श्री नेमीचन्दजी बांठिया) वह भी बड़ी उदार और तपस्विनी है । मासखमण का तप आप कर चुकी हैं। वर्षीतप और अनेक तपस्याएँ आपने की हैं । आप जैन दिवाकरजी महाराज के प्रति बहुत भक्ति भावना रखते हैं । स्मृतिग्रन्थ में प्रभु - खतापूर्वक सहयोग प्रदान किया है । तथा आपकी उदारता से अनेक व्यक्तियों को स्मृतिग्रन्थ भेंट दिया जायेगा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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