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________________ Jain Education International श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ परन्तु उन्होंने अपना दीक्षा का विचार पक्का कर लिया। विक्रम सं० १९२० में भावी पूज्य श्री चौथमलजी महाराज और मुनिश्री रतनचन्दजी महाराज का चातुर्मास फलौदी मारवाड़ में था । तब कंजार्डा का श्रीसंघ पहुँचकर मुनिश्री से निवेदन किया कि चातुर्मास के पश्चात् आप विहार कंजार्डा की तरफ कराने की कृपा करें । कारण श्री रतनचन्दजी महाराज का शेष सारा कुटुम्ब दीक्षा ग्रहण करने वाला है । मुनिश्री ने विनती स्वीकार की । चातुर्मास के पश्चात् विहार करते हुए कंजार्डा पधारे । उन पधारने वाले मुनिराजों में श्रीमद् जैनाचार्य शिवलालजी महाराज, श्री राजमलजी महाराज, भावी पूज्य श्री चौथमलजी महाराज, श्री रतनचन्दजी महाराज और श्री देवीचन्दजी महाराज आदि आठ मुनिराज थे। इनके अतिरिक्त श्री रंगूजी महासतीजी महाराज श्री नवला जी महासतीजी महाराज और श्री व्रजूजी महासती जी महाराज का शुभ आगमन भी कंडा में हुआ । पौष शुक्ल छठ सं० १९२० के पवित्र दिन श्रीमती राजकँवर बाई ने अपने तीनों पुत्रों ( जवाहरलालजी, हीरालालजी नन्दलालजी) को दीक्षा दिलवाई । और स्वयं भी दीक्षित हो गई । पूज्य श्री ने राजकँवर बाई को दीक्षा देकर महासतीजी श्री नवलाजी महाराज की शिष्या घोषित की । चिन्तन के विविध बिन्दु : ५७४ : इसी प्रकार मुनि जवाहरलालजी महाराज को मुनि श्री रतनचन्दजी के शिष्य और मुनिश्री हीरालालजी महाराज, मुनिश्री नन्दलालजी महाराज को, मुनिश्री जवाहरलालजी महाराज के शिष्य घोषित किये । जैसे विद्वद्वर पं० श्री राजमलजी महाराज के शिष्य श्री रतनचन्दजी महाराज श्री जवाहरलालजी महाराज श्री नन्दलालजी महाराज श्री हीरालालजी महाराज मुनिश्री माणकचन्दजी महाराज मुनिश्री चेनरामजी महाराज मुनिश्री लक्ष्मीचन्दजी महाराज आगे की शिष्य-परम्परा संलग्न चार्ट में देखें । For Private & Personal Use Only ✡ www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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