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________________ : ५५७ : धर्मवीर लोंकाशाह श्री जैन दिवाकर.म्मृति-ग्रन्थ । ऐतिहासिक चर्चा धर्मवीर लोंकाशाह -डा० तेजसिंह गौड़, एम० ए०, पी-एच० डी० कल्पसूत्र में भगवान महावीर के कल्याणकों का वर्णन करके दीवाली की उत्पत्ति और श्रमण-संघ के भविष्य का कुछ उल्लेख किया गया है। उसमें बताया गया है कि जिस समय भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, उस समय उनके जन्म नक्षत्र पर भस्मराशि नामक महाग्रह का संक्रमण हुआ। जब से २००० वर्ष की स्थिति वाला भस्मग्रह महावीर की जन्म राशि पर आया तब से ही श्रमण संघ की उत्तरोत्तर सेवाभक्ति घटने लगी। भस्मग्रह के हटने पर २००० वर्ष बाद श्रमण संघ की उत्तरोत्तर उन्नति होगी। इस बीच में धर्म और शासन को संकट का मुकाबला करना होगा। करीब-करीब इसी वचनानुसार शुद्ध निर्ग्रन्थधर्म और उसके पालकों का शनैः-शनैः अभाव-सा होता गया। विक्रम संवत् १५३० को जब २००० वर्ष पूरे हुए, तब लोकाशाह ने विक्रम संवत् १५३१ में आगमानुसार साधुधर्म का पुनरुद्योत किया। उनके उपदेश से लखमशी, जगमालजी आदि ४५ पुरुषों ने एक साथ भागवती दीक्षा स्वीकार की, जिनमें कई अच्छे-अच्छे संघपति और श्रीपति भी थे। लोकाशाह की वाणी में हृदय की सच्चाई और सम्यकज्ञान की शक्ति थी, अतएव बहुसंख्यक जनता को वे अपनी ओर आकर्षित कर सके । आगमों की युक्ति, श्रद्धा की शक्ति और वीतराग प्ररूपित शुद्ध धर्म के प्रति भक्ति होने के कारण लोंकाशाह क्रांति करने में सफल हो सके ।' लोकाशाह के सम्बन्ध में विदुषी महासती श्री चन्दनकुमारीजी महाराज ने लिखा है, "उन्होंने स्वयं अपना परिचय अथवा अपनी परम्परा का उल्लेख कहीं भी नहीं किया है । परम्परागत वृत्तांतों तथा तत्कालीन कृतियों के आधार पर ही उनके इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। अनेक भण्डारों में भी उनके जीवन सम्बन्धी परिचय की प्राचीन सामग्री संग्रहीत है । श्रीमान् लोकाशाह के जन्म संवत् के विषय में अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं । कोई उनका जन्म १४७५ में कोई १४८२ में तथा कोई १४७२ को प्रमाणित मानते हैं। इनमें वि० सं० १४८२ का वर्ष ही ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक जंचता है। वि० सं० १४८२ कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुजरात के पाटनगर अहमदाबाद में आपका जन्म होना माना जाता है। कुछ विद्वान् उनका जन्म "अरहट्टवाड़ा" नामक स्थान पर मानते हैं। यह ग्राम राजस्थान के सिरोही जिले में है।" एक इतिहास लेखक ने उनका जन्म सौराष्ट्र प्रांत के लिम्बड़ी ग्राम में दशाश्रीमाली के घर में होना लिखा है। किसी ने सौराष्ट्र की नदी के किनारे बसे हुए नागवेश ग्राम में हरिश्चन्द्र सेठ की धर्मपत्नी मंघीबाई की कुक्षि से उनका जन्म माना है। कुछ लोग उनका जन्म जालौर में मानते हैं । इन सभी प्रमाणों में अहमदाबाद का प्रमाण उचित जंचता है । क्योंकि अणहिलपुर पाटण के लखमसी श्रेष्ठि ने अहमदाबाद आकर ही उनसे धर्म-चर्चा की थी। अरहट्टवाड़ा, पाटन और सुरत १ आदर्श विभूतियाँ, पृष्ठ ५-६ २ श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, पृष्ठ ४७० ३ पट्टावली प्रबन्ध संग्रह, पृष्ठ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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