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________________ : ५३५ : मिथ्यात्व और सम्यक्त्व : एक तुलनात्मक विच्छिी जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ॥ सम्यकदर्शन का वर्गीकरण उत्तराध्ययनसूत्र में सम्यकदर्शन के, उसकी उत्पत्ति के आधार पर, दस भेद किये गये हैं, जो निम्नानुसार हैं (१) निसर्ग (स्वभाव) रुचि सम्यक्त्व-जो यथार्थ दृष्टिकोण व्यक्ति में स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है, वह निसर्गरुचि सम्यक्त्व कहा जाता है । (२) उपदेशरुचि सम्यक्त्व-दूसरे व्यक्ति से सुनकर जो यथार्थ दृष्टिकोण या तत्त्वश्रद्धान होता है, वह उपदेशरुचि सम्यक्त्व है। (३) आज्ञारुचि सम्यक्त्व-वीतराग महापुरुषों के नैतिक आदेशों को मानकर जो यथार्थ दृष्टिकोण उत्पन्न होता है अथवा जो तत्त्वश्रद्धा होती है, उसे आज्ञारुचि सम्यक्त्व कहा जाता है। (४) सूत्ररुचि सम्यक्त्व -अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर जो यथार्थ दृष्टिकोण या तत्त्वश्रद्धान होता है, वह सूत्ररुचि सम्यक्त्व कहा जाता है। (५) बोजरुचि सम्यक्त्व-यथार्थता के स्वल्पबोध को स्वचिन्तन के द्वारा विकसित करना, बीजरुचि सम्यक्त्व है। (६) अभिगमरुचि सम्यक्त्व-अंगसाहित्य एवं अन्य ग्रन्थों को अर्थ एवं विवेचना सहित अध्ययन करने से जो तत्त्व-बोध एवं तत्व-श्रद्धा उत्पन्न होती है, वह अभिगमरुचि सम्यक्त्व है। (७) विस्ताररुचि सम्यक्त्व-वस्तुतत्त्व (षट् द्रव्यों) के अनेक पक्षों का विभिन्न अपेक्षाओं (दृष्टिकोणों) एवं प्रमाणों से अवबोध कर उनकी यथार्थता पर श्रद्धा करना, यह विस्ताररुचि सम्यक्त्व है। (4) क्रियारुचि सम्यक्त्व-प्रारम्भिक रूप में साधक जीवन की विभिन्न क्रियाओं के आचरण में रुचि हो और उस साधनात्मक अनुष्ठान के फलस्वरूप यथार्थता का बोध हो, वह क्रियारुचि सम्यक्त्व है। (8) संक्षेपरुचि सम्यक्त्व-जो वस्तुतत्त्व का यथार्थ स्वरूप नहीं जानता है और जो आर्हत् प्रवचन (ज्ञान) में प्रवीण भी नहीं है लेकिन जिसने अयथार्थ (मिथ्यादृष्टिकोण) को अंगीकृत भी नहीं किया, जिसमें यथार्थ ज्ञान की अल्पता होते हुए भी मिथ्या (असत्य) धारणा नहीं है ऐसा सम्यक्त्व संक्षेपरुचि कहा जाता है । (१०) धर्मचि सम्यक्त्व-तीर्थकरदेव प्रणीत धर्म में बताए गए द्रव्य स्वरूप, आगम साहित्य एवं नैतिक नियम (चारित्र) पर आस्तिक्य भाव रखना उन्हें यथार्थ मानना यह धर्म रुचि सम्यक्त्व है।५१ सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण५२ अपेक्षाभेद से सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण भी जैनाचार्यों ने किया है। इस वर्गीकरण के अनुसार सम्यक्त्व के कारक, रोचक और दीपक ऐसे तीन भेद किये गये हैं : १. कारकसम्यक्त्व जिस यथार्थ दृष्टिकोण (सम्यक्त्व) के होने पर व्यक्ति सदाचरण या सम्यकचारित्र की ५१ उत्तरा० २८.१६ ५२ विशेषावश्यकभाष्य २६७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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