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________________ श्री जैन दिवाकर.म्मृति-ग्रन्थ । चिन्तन के विविध बिन्दु : ४६२ : "उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं च उज्जुभावेण, लोभं संतोसओ जिणे ॥" -दशवैका० अ०८, गा० ३६ अगर क्रोध को नष्ट करना चाहते हो तो उपशमभाव-क्षमाभाव को धारण करलो। अभिमान को मृदुता-नम्रता से जीतो, माया (कपट) को सरलता से और लोभ को संतोष से जीतो। क्रोध को छोड़ने के लिए क्रोध का बार-बार चिन्तन नहीं करना है, मान पर विजय पाने के लिए अभिमान का स्मरण करना उचित नहीं है, माया का त्याग करने के लिए बार-बार यह रटन ठीक नहीं कि मुझे माया को छोड़ना है, और न ही लोभ को तिलांजलि देने के लिए लोभ पर मनन करने की आवश्यकता है। अन्धकार को हटाने के लिए कोई व्यक्ति अन्धकार को मिटाना चाहता है तो क्या अंधेरे का बार-बार चिन्तन, मनन या रटने से अथवा हाथ से बार-बार अन्धकार को हटाने से वह हट जायेगा, नष्ट हो जायेगा? ऐसा कदापि सम्भव नहीं है। एक परिवार में नई-नई बहू आयी थी। बहू बहुत ही भोली और बुद्धि से मन्द थी। घर में सास, बहू और लड़का तीन ही प्राणी थे। कच्चा घर था। मिट्टी के घड़ों में घर का सामान रखा हुआ था। एक दिन लड़का कहीं बाहर गांव गया हुआ था। रात को सास-बहू दो ही घर में थीं। किसी आवश्यक कार्यवश सास को बाहर जाना था। अत: जाते समय वह बहू को हिदायत देती गयी-"बहू ! मैं अभी जरूरी काम से बाहर जा रही है। तू एक काम करना, अंधेरे को मार भगाना और घर के आवश्यक कार्य कर लेना।" भोली बहू ने सास की आज्ञा शिरोधार्य की। रात का समय हुआ । अंधियारा फैलने लगा। बहू ने सास की आज्ञा को ध्यान में रखते हुए अपने हाथ में डंडा उठाया और उसे घुमा-घुमाकर अंधेरे को भगाने लगी। हाथ थक गये डंडा घुमाते-घुमाते, पर अँधेरा भगा नहीं। प्रत्युत और अधिक फैल गया। और डंडे के घुमाने, पटकने से घर में सामान के भरे घड़े भी फूट गये। सामान इधर-उधर बिखर गया। सास जब आवश्यक कार्य से निपटकर घर आयी और उसने यह सब माजरा देखा तो वह दंग रह गयी। सास ने पूछा-"बहु ! ये घड़े क्यों फोड़ डाले ?" "माताजी ! आपने अंधेरे को मार भगाने के लिए कहा था न । मैंने पहले डंडा यों ही घुमाया, पर अंधेरा भागा नहीं, तब डंडा मारना शुरू किया। अफसोस है, तब भी अँधेरा भागा नहीं, बल्कि बढ़ता ही चला गया।" बहू ने कहा । बहूरानी के अविवेक पर नाराजी दिखाते हुए सास बोली-“ऐसे कहीं डंडा मारने से अंधेरा भागता है ? तुने अक्ल के साथ दुश्मनी कर रखी मालूम होती है।" "माताजी ! तो बताइए न, यह अंधेरा कैसे भगेगा, डंडे के बिना ?" । सास ने मुस्कराते हुए कहा-"बहूरानी ! ला, दीपक ले आ। मैं अभी बताती हूँ, अंधेरा कैसे भगाया जाता है ! बहरानी सरल थी। वह तुरन्त एक दीपक ले आयी। सास ने दीपक जलाया दीपक के प्रज्वलित होते ही घर का सारा गहन अंधकार दूर हो गया। सास ने बहूरानी से कहा-“देखो, बहू ! अन्धकार डंडे मारने से नहीं भागता, वह तो प्रकाश से बहुत शीघ्र भाग जाता है।" ___ ठीक इसी प्रकार बुराई या विकारों का अन्धकार मिटाना हो तो बुराई या विकारों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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