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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । श्री जैन दिवाकरजी के प्रिय पद्य : ४३६ : १४. उपकारी गुरुजन (तर्ज-जाओ जाओ ए मेरे साधु) आते-आते हैं महा उपकारी जैन पूज्य वर याद ।टेर। पूज्य मुनिश्री हुकमचन्दजी, रहे व्याख्यान सुनाय । बरसे थे रुपये नभ से, नाथद्वारा माय ।१। पूज्यवर धर्मदासजी ने, शिष्य अपना कायर जान । धार शहर में अनशन कीना, रखी धर्म की शान ।। नेतसिंह मुनि किया संथारा, सेवा सुर आ करते। उनके नाम का महुआ सैलाने, आज तलक जन कहते ।३। रतनचन्दजी महाराज पधारे, शहर जावरा माँय । प्रसन्न हो सुर मंगलिक सुनता, रात समय में आय ।४। प्रत्यक्ष में भैरू बुलवाया, मेवाड़ी मुनि मान। उनके पुजारी देखो आज तक, जैनधर्म रहे मान ।। स्वामी रोडजी ने तपस्या में. ली प्रतिज्ञा धार । गज वृषभ ने आहार बेराया, उदियापुर मँझार ।६। जोधपुर आसोप हवेली, पूज्य अमरसिंह आय। शास्त्र श्रवणकर असुर वहाँ का, सरल बना हर्षाय ।७। अहमदाबाद में धर्मसिंह मुनि, रहे दरगा में जाय। जिन्द प्रसन्न हो मिला आप से, रजनी के बीच आय ।८। अम्बाले में मुनिलाल का, हुआ अग्नि संस्कार। चोल पट्टा चद्दर जली नहीं, मौजूदा इस वार ।। गुरु प्रसादे 'चौथमल' कहे, सुन जो भाया बाया। कई पूज्य मुनि हुए जैन में, गुण जावे नहीं गाया ।१०। COM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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