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________________ :४३५ : भक्ति-स्तुति प्रधान-पद भिजन दिवार लहरि अन्य | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-न्य । १२. महावीर का ध्यान (तर्ज-पूर्ववत्) महावीर से ध्यान लगाया करो। सुख सम्पति इच्छित पाया करो।टेर। क्यों भटकता जगत में, महावीर-सा दूजा नहीं। त्रिशला के नन्दन जगत वन्दन, अनन्त ज्ञानी है वही । उनके चरणों में शीश नमाया करो ।। जगत भूषण विगत दूषण, अधम उधारण वीर है। सूर्य से भी तेज है, सागर के सम गम्भीर है। ऐसे प्रभु को नित्य उठ ध्याया करो ।२। महावीर के प्रताप से, होती विजय मेरी सदा। मेरे वसीला है उन्हीं का, जाप से टले आपदा । जरा तन मन से लौ लगाया करो।३। लसानी ग्यारे ठाणा, आया चौरासी साल है। कहे चौथमल गुरु कृपा से, मेरे वरते मंगलमाल है। सदा आनन्द हर्ष मनाया करो।४। १३. मनावो महावीर (तर्ज-न छेड़ो गाली दुगा रे) जो आनन्द मंगल चावो रे, मनावो महावीर ।टेर। प्रभु त्रिशलाजी का जाया, है कंचन वर्णी काया। जां के चरणा शीश नमावो रे, मनावो महावीर ।। प्रभु अनन्त ज्ञान गुणधारी, है सूरत मोहनगारी। जां का दर्शन कर सुख पावो रे, मनावो महावीर ।२। या प्रभुजी की मीठी वाणी, है अनन्त सुखों की दानी। थें धार धार तिरजावो रे, मनावो महावीर ।३। जाँके शिष्य बड़ा है नामी, सदा सेवो गौतम स्वामी । जो रिद्धि सिद्धि थे पावो रे, मनावो महावीर ।४। थारा सब विघन टल जावे, मन वांछित सुख प्रगटावे। फेर आवागमन मिटावो रे, मनावो महावीर ॥५॥ ये साल गुण्यासी भाई, देवास शहर के मांई । कहे 'चौथमल' गुण गावो रे, मनावो महावीर ।६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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