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________________ | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३६४ : सचमुच में एक ऐसे ही हमेशा के लिए कायम रहकर खिलने वाले फूल बनकर, गुलशने आलम में महके थे। बेशक वे इन्सान थे, लेकिन उनकी जिन्दगी एक पूर-नर मेहरो-माह से भी बढ़कर थी। तभी तो शायर को कहना ही पड़ा, आपको देखकर निगाह बर्क नहीं, चेहरा आफताब नहीं । वही आदमी थे, मगर देखने को ताब नहीं॥ श्रद्धय दिवाकरजी महाराज के कौल और फैल खुशी हो या गम यह नहीं कि उनका दिल कुछ सोचे और जबान कुछ कहे । जबान कुछ कहे और फल कुछ और ही कर गुजरें। नहीं, दिल, जबान और अमल यह तीनों आपके यक्सां रहे हैं। तभी तो आप एक महान् पुरुष बन सके, पाकबातन कहला सके । इसीलिए तो कहता है कोल और फैल से, खयालात हैं उनके यकसा पाक-बातन जो जमाने में हुआ करते हैं। उनकी जिन्दगी शुरू से आखिर तक पाक और साफ रही है। वे सदाकत की राह पर चलकर मंजिले-हकीकत पर पहुँच गए। और दुनिया के लिए दामने-गेती पर अपने नक्शे कदम छोड़ गए। ताकि और भी कोई मुसाफिर इन नक्शे कदम पर कदम दर कदम चलता हुआ मंजिले मकसूद तक पहुँच सके। श्री दिवाकरजी महाराज अपने वस्फों से, अपने अमल से, अपनी शीरी कलामियों से, अपनी जिन्दादिली से और अपनी पुर-मुहब्बत मीठी यादगारों से, आज भी हमारे सामने मौजूद है । और हैं हमेशा-हमेशा के लिए हमारे दिल में कायम । वे दर हकीकत अब हमसे जुदा होने वाले नहीं हैं। चूंकि मिट्टी का बना हुआ यह जिस्म ही तो पानी है, इन्सां के औसाफ तो पानी नहीं? वे तो हर हालत में हमेशा के लिए कायम रहने वाले हैं। मरने वाला सिर्फ आँखों से ही दूर होता है । लेकिन बिल्कुल फना तो नहीं होता । अपने औसाफ से, अपने नाम से और अपने कौल और फैल से तो वह इस दुनियाँ में कायम रहता है। इसी तरह दिवाकर जी महाराज के लिए भी यही कहा जा सकता है कि वे सिर्फ हमारी आँखों से ही दूर हए हैं दिलों से दूर नहीं। वह दिलों में तो हमारे, ज्यों के त्यों मौजूद हैं और सदियों तक मौजूद रहेंगे, इसमें जरा भी सन्देह की गुंजायश नहीं है । बस अब तो मैं उर्दू शायर सर इकबाल के लफजों में आखिरी बात कहकर, उस दिवाकरजी महाराज को अपने श्रद्धा की चन्द अधखिली कलियां भेंट करती हूँ। मरने वाले मरते हैं, लेकिन फना होते नहीं। ये हकीकत में कभी हमसे, जुदा होते नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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