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________________ : ३४५ : समाज-सुधार की दिशा में युगान्तरकारी प्रयत्म श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ || न करा सके । आपश्री का पदार्पण वहाँ सं० १९६० में हुआ। लोगों ने समझा अब एकता स्थापित हो जायगी। एकता पर बल देते हुए आपने कई व्याख्यान भी दिए, किन्तु इच्छित परिणाम न निकला। आपश्री वहाँ से चलकर रामस्नेही आश्रम पधारे। यह आश्रम पाली नगर से कुछ दूर है। जनता वहाँ भी आपका प्रवचन सुनने पहुँची। प्रवचन इतना जोशीला था कि जैनों के दिल हिल उठे । पाली संघ में प्रेम की गंगा बह आई। श्री मिश्रीलालजी मुणोत ने भी इस कार्य में बहुत सहयोग दिया। एकता स्थापित होने के बाद पाली संघ आपको पुनः नगर में ले आया तथा वहाँ आपके दो प्रवचन और हुए। मनमाड के संघ का मनोमालिन्य भी आपके सदुपदेशों से दूर हुआ। रतलाम चातुर्मास (१९८५ विक्रमी) पूर्ण करके आप छत्रीवरमावर पधारे । वहाँ ओसवालसमाज में पुराना वैमनस्य थो । आपके सप्रवचनों से वह धुल गया और सभी एकता के सूत्र में बँध गये। इसी प्रकार जहाँ-जहाँ भी समाज में, चाहे वह जैन रहा हो अथवा जैनेतर, वैमनस्य, फट, अलगाव आदि आपके सदुपदेशों से दूर हुआ । यह आपके ओजस्वी वक्तृत्व और प्रभावशाली व्यक्तित्व का चमत्कार था। रूढ़ियों और कुरीतियों पर प्रहार समाज के सुधार हेतु कुरीतियों और रूढ़ियों को मिटाना आवश्यक है। सामाजिक जीवन को ये रूढ़ियाँ विषाक्त करती है और उसे अधःपतन की ओर प्रेरित करती हैं। जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से ऐसी अनेक रूढ़ियों का विनाश हुआ। जैन दिवाकरजी महाराज जब जहाजपुर पधारे तो वहाँ का समाज वेश्यानृत्य, मदिरापान, कन्या-विक्रय आदि कई घातक रूढ़ियों से ग्रस्त था । आपके सदुपदेश से दिगम्बर जैन, माहेश्वरियों और अनेक लोगों ने इन रूढ़ियों को त्याग दिया। चित्तौड़ में आपके व्याख्यानों से प्रेरित होकर ओसवाल और माहेश्वरियों ने अपने-अपने समाज में पहरावणी, कन्याविक्रय आदि कुरीतियों को त्यागा और साथ ही यह व्यवस्था भी की कि जिस भाई के पास अपनी कन्या के विवाह के लिए धन न हो, उसे पंचायती फण्ड से ४०० रुपये तक कर्ज के रूप में बिना ब्याज के दिया जाय । धर्म के नाम पर हिंसा एक भयंकर रूढ़ि है। इसमें पाप, पुण्य का जामा पहनकर धर्म बन जाता है । जैन दिवाकरजी महाराज ने इस कुप्रथा को भी बन्द कराने का प्रयास किया । जब आप गंगापुर में विराजमान थे तब उज्जैन के सर सूबेदार आपके दर्शनार्थ आये । उन्होंने सेवा फरमाने की प्रार्थना की तो आपश्री ने अहिंसा की प्रेरणा देते हए कहा-'आप उज्जैन के उच्चअधिकारी हैं। वहां देवी-देवताओं के नाम पर होने वाली हिंसा को बन्द करा सकें तो कितना अच्छा हो ?' उन्होंने इस कार्य को करने का वचन दिया। राश्मी में आपने देवी के सम्मुख प्रतिवर्ष होने वाली एक पाड़े की बलि को बन्द करवाया। अस्पश्यता निवारण अस्पृश्यता भारतीय समाज और विशेष रूप से हिन्दू समाज का बहुत बड़ा कलंक है। जैन धर्म तो अस्पृश्यता को मानता ही नहीं। वह तो मनुष्य की आत्मिक पवित्रता में विश्वास करता है, कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति और वर्ण का हो, सदाचार का पालन कर आत्मा को पवित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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