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________________ श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणे : ३४२ : साथ-साथ व्यक्ति में समाहित अमानवीय तत्त्वों से बचने के उपाय का मार्ग भी बताते थे । कोरी कथाओं का उनमें अभाव था, जो कुछ वे कहते उसके पीछे उनका जीवन-अनुभव होता था। जैन दिवाकर महाराज श्री प्रायः प्रचलित ज्वलन्त समस्याओं पर अपना सरल किन्तु सरसता से ओत-प्रोत शैली में वक्तव्य दिया करते थे। वे जन-जन में धर्म की बातों को बताते थे, साथ ही उन पर अमल करने के लिए बल भी देते थे। _ क्या कुछ कहा जाए, क्या कुछ लिखा जाय, ऐसे सन्त के विषय में जिसने सम्पूर्ण जीवन दीन-दुखियों, पतितों के उद्धार में खपाया हो । साथ ही जिसने अन्त्यज तथा पतित समाज के अनगिनत व्यक्यिों को जीने का एक नया दिन दिया, एक नई रात दी और दिया एक नया रूप । सचमुच समाज में व्याप्त विषाद पूर्ण वातावरण में समाज को ऐसे महापुरुष की अत्यन्त आवश्यकता थी, आवश्यकता है और रहेगी। -राजीव प्रचंडिया बी० ए०, एल-एल० बी० पीली कोठी, आगरा रोड, अलीगढ़ २०२००१ • बोगी रिजर्व करदी है ---------------------------o-o-o-o-o-r? उदयपुर प्रवास के समय वहाँ के स्टेशन मास्टर की धर्मपत्नी गुरुदेव के व्याख्यान सुनने आती थी। एकदिन स्टेशन मास्टर भी आये। उन्हें पता लगा कि महाराज साहब यहाँ से अमुक दिन प्रस्थान करके चित्तौड़ की तर्फ जायेंगे। -o-10--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0-2 एक अन्य दिन दोपहर के समय स्टेशन मास्टर पुनः आये और निवेदन किया-"स्वामीजी ! यहाँ से चित्तौड़ तक के लिए एक डिब्बा (बोगी) आपके और आपके शिष्यों के लिए मैंने रिजर्व कर दिया है, आप आनन्द से जाइए। आगे का प्रबन्ध और कोई कर देगा।" गुरुदेव ने उन्हें बताया-"हम किसी प्रकार की सवारी नहीं करते, पैरों में जूती का भी प्रयोग नहीं करते । पैदल और नंगे पाँवों ही पूरे देश का पर्यटन ६ करते हैं।" सुनकर स्टेशन मास्टर को बड़ा आश्चर्य हुआ। आपके तप व त्याग १ से वे इतने प्रभावित हुये कि घर पर गोचरी के लिए ले गये। उनकी धर्मपत्नी ने आरती सजाकर रखी थी। गुरुदेव के पहुंचते ही आरती उतारने लगी। और स्टेशन मास्टर साहब रुपयों की वर्षा करने लगे! गुरुदेव ने रोका, और । समझाया-हमारा स्वागत करना हो तो त्याग की आरती कीजिए, भक्ति, श्रद्धा का सुफल है-जीवन में कुछ न कुछ सत्संकल्प लेना। -श्री केवल मुनि -o------- --------------O-----©---------0---0--©------o 0-0--0--0--0--0--0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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