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________________ :३१७ : लोकचेतना के चिन्मय खिलाड़ी | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । हो जाता। कई लोग ऐसे मिल जायेंगे जिनके मन पर उनकी गायक वाणी का आज भी वही स्वर सौन्दर्य पैठा हुआ है। कितनी मीठी तेज और ऊँची साफ गायकी थी उनकी! क्या तणें निकालते और गायन बनाते थे वे ! जनजीवन की समग्र भावनाओं की जैसे प्रत्येक अक्षर पंक्ति गायकी में वे जड़ देते थे। एक नमूना देखिये उनकी चंपक चरित्र नामक प्रकाशित वृति का : दोहा-वर्द्धमान शासन पति, तारण तिरण जहाज । नमन करी ने विनवू, दीजो शिवपुर राज । गौतम गणधर सेवतां, सकलविध्न टल जाय । अष्ट सिद्ध नव निधि, मिले, पग-पग सुख प्रकटाय ।। अरे करुणा दिलधारी करण उपकारी चंपक सेठजी ॥टेर।। देश मनोहर मालवो सरे, नगरी बड़ी उज्जैन । राजा राज करे जहाँ विक्रम, प्रजा में सुख चैन ॥१॥ बावन भैरू चौसठ योगीनी, सिफरा नदी के तीर । महा काल गणपति हर सिद्धि सहायक आग्यो वीर ॥२॥ उसी नगर में जीवो सेठ रहे, धन भर्या भंडार । मुल्कां में दुकाना उसकी, बडा है नामनदार ।।३।। सेठानी है धारिणी सरे, पतिव्रता सुखमाल । चंपक कुँवर है विद्या सागर, शशि सम शोभे भाल ॥४॥ मुनिश्री चौथमलजी महाराज के शिष्यों के शिष्य एवं अन्य मुनियों पर भी वर्तमान में उन्हीं की तर्ज शैली में इस प्रकार की रचनाओं में लीन हैं। इन शिष्यों में मूलमुनि रचित श्री समरादित्य-चरित्र तथा व्यवहारी रतनकुमार-चरित्र, मुनि रमेशकुमारजी का वीरभान उदयभान चरित्र, हजारीमलजी महाराज साहब का सती कनकसुन्दरी चरित्र उल्लेखनीय है। लोकगायिकी की इस परम्परा में मुनिश्री ने जैन-चरित्रों की रचना कर न केवल उन्हें सामान्य आम जनता के लिए शिक्षाप्रद ही बनाया, अपितु लोकानुरंजन द्वारा लोकशिक्षण का एक जबर्दस्त द्वार भी सदा के लिए खोल दिया जिससे जैनधर्म केवल जैनों के रहने से बच गया । मुनिश्री की देन जितनी समाज की रही, साहित्य और सांस्कृतिक इतिहास को भी उससे कम नहीं रही । वे हर संदर्भो मे जीवन व समाज को स्वस्थ भावभूमि और जीवनीशक्ति प्रदान करने वालों में एक अगुआ संत के रूप में स्मरण किये जाते रहेंगे। [परिचय व सम्पर्क सूत्रराजस्थानी लोककला के विथ त मर्मज्ञ विद्वान् निदेशक-भारतीय लोककला मण्डल, उदयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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