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________________ :२३७: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम । प्री जल दिवाकर स्पति-गल्य श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ || गुलाब-सा सुरभित जीवन सौ० मंजुलाबैन अनिलकुमार बौटाद्रा, (इन्दौर) [बी. ए., अध्यापन विशारद] भारत संतों का देश है । अर्थात् भारत का गौरव, भारत की शोभा महान विभूति, संत, महात्मा हैं। अपने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सत्साहित्य-अमृत वाणी रूप पराग से अनेक भवीजनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और जिनवाणी के माध्यम से चारगति में फँसे अज्ञानी जीवों को बाहर निकालते हैं उनमें से आज अनेक सन्त इस अवनी पर नहीं हैं किन्तु उनकी सुरभि से उनके कार्यों से आज भी हमारा हृदय-विभोर हो जाता है। गगन में सूर्य उदय होता है धरातल चमक उठता है । उद्यान में वृक्ष पर पुष्प विकसित होते हैं, वातावरण में सुरभि भर देता है । मानव समाज भारतीय ऐसे ही नर-रत्नों से परिपूर्ण हो जाता है। जिन्होंने जीवन को तप, त्याग की साधना के पथ पर आगे बढ़ाया है । वहाँ समाज और धर्म को भी अलौकिक ज्ञान का ज्वलंत प्रकाश दिया है। स्थानकवासी समाज का इतिहास ऐसे ही एक-दो नहीं, सैकड़ों सन्तों को आदरणीय, वंदनीय स्तुत्य जीवन और उनके ज्ञान का अलौकिक प्रभा से भरा है। उन्हीं महापुरुषों में हैं "जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज साहब ।' गुलाब अपना सर्वस्व अर्पण करके वातावरण को सुरभिमय बना देता है। अगरबत्ती स्वयं जलकर सारे वातावरण को शुद्ध बनाती है। उसी तरह सन्त स्वयं अपने लिये ही नहीं जीते, किन्तु अपने अलौकिक ज्ञान का प्रकाश से भव्यात्माओं के हृदय की अंधियारी गुफा में अज्ञान को नष्ट करते हैं और ज्ञान की ज्योति ज्वलित रखते हैं । उस महान् आत्मा को जन्म शताब्दी के इस सुअवसर पर हम भावपूर्ण श्रद्धा व्यक्त किये बिना नहीं रह सकते । सच्ची श्रद्धा के पुष्प तो हम उनके गुणों को अपने जीवन में धारण करके ही बढ़ा सकते हैं । इस भावना से मैं श्रद्धा के मधर क्षणों में उस विराट आत्मा के प्रति अपनी भाव पूर्ण श्रद्धांजलि अर्पण करती हैं। पूज्य गुरुदेव जैन दिवाकर जी -प्रकाशचन्द मारु (मंदसौर) जैन दिवाकर-प्रसिद्ध वक्ता पं० मुनि श्री चौथमलजी महाराज साहब एक महा सन्त थे जिन्होंने इस भारत-भूमि में जन्म लेकर अपना समस्त जीवन विश्व-कल्याण के लिये एवं मानवजाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। महलों से लेकर झोंपड़ी तक के मानव को ज्ञानरूपी प्रकाश से देदीप्यमान करते हुए अनेक दुर्व्यसनों से छुड़ाकर हजारों जीवों को अभयदान दिलाया। गुरुदेव के सान्निध्य में स्वर्ण जयन्ति महोत्सव चित्तौड़गढ़ किले पर हआ। यह उत्सव स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। अन्त में पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज साहब की जन्म शताब्दी पर उनके श्रीचरणों में अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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