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________________ श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २३६ : संस्कृत - प्राकृत-हिन्दी - उर्दू, गुजराती भाषा जानी । राजस्थानी और फारसी, मेवाड़ी के गुरु ज्ञानी ।। [१४] था उपदेश प्रभावी जिनका, ___ अद्भुत रस से भरा हुआ। धर्मावलम्बी मानव का जहाँ, सुन-सुन मानस हरा हुआ। दा महलों से कुटिया तक पहुंचा, सभी वर्ग जाति के बन्धु, ___ जैन दिवाकर का सन्देश । सुनते थे संदेश सदा। 'प्रसिद्ध वक्ता' कहलाये जो, छोड़ व्यसन बनते पावन, उदित हुआ जिन-पथ का सन्देश । वाणी में था स्नेह लदा ।। _ [१७] [१८] वक्ता थे गुरुदेव कवि थे, चरित्रकार थे रचे आपने, लेखक भी थे गायक थे। कई सुहाने महाचरित्र । संतों के गुण से परिपूरित, जिनको पढ़कर कइयों के, भक्तों के उन्नायक थे। मानस बन गये यहां पवित्र । । [१६] [२०] हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई कई विरोधी आये थे बस, ___ में भी धर्म-प्रचार किया। उल्टा-सीधा ले अभियान । अधः ओर जाने वालों गुरुदेव की तेजस्विता ने, का; गुरु ने उद्धार किया । उनमें भी पाया सम्मान । [२१] [२२] झुके चरण में उनके मस्तक, कइयों ने दी भेंट आपको, झूठ-कपट सब छोड़ दिया। सप्त-व्यसन छोडे मन से। सम्यक् श्रद्धा मार्ग दिखाया, कइयों के पथ-सुपथ बने हैं, आया उनमें मोड़ नया ॥ कई सरसन्ज बने धन से। [२३] [२४] सुमन चमन से चला गया पर ऐसे जैन विवाकर जग के, जग में छोड़ गया शुभ वास । महा। दिवाकर कहलाये। उपदेशों का नीर बहाया, ऐसे गुरुवर के चरणों में मिटा गया भवियों की प्यास ॥ __ श्रद्धा सुमन चढ़ायें ॥ [२५] स्मृति प्रन्थ रहे हृदय बीच में, पूज्यनीय बन जायेगा। जय-जयकार रहेगी उसकी, जो नित गुरु को ध्यायेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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