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________________ | श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ । श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २३२ : वर्णन करना लेखनी से बाहर है तथा अत्यन्त दुष्करत कार्य है, लेकिन आपका जीवन एवं कार्य संसार के प्राणियों के लिए प्रेरणादायक रहा है। श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने सचमुच में अहिंसा व सत्य के सिद्धान्तों द्वारा जैनधर्म के प्रचार व प्रसार में योगदान तो दिया ही है, किन्तु इन महान् सन्त ने हजारों मील की पद-यात्रा करके राजा-महाराजा जागीरदार, सेठ एवं मध्यम वर्ग के लोगों को अपने व्याख्यानों से लाभान्वित किया है। इतना ही नहीं, असंख्य जीवों को अभयदान भी दिलवाया तथा अनेक राजा-महाराजा, जागीरदारों से अगते पलवाने के पट्टे भी लिखवाये। अन्त में गुरुदेव के प्रति अपनी भावपूर्ण अश्रु पूरित श्रद्धांजली अर्पित करता हुआ समाज से निवेदन करता हैं कि उनकी जन्म शताब्दी में उनके बताये हुए मार्ग का अनुसरण कर कार्य करने की ओर अग्रसर हो। - % 0-0-0 0.00 0-0-0 0-00 0-0-0 0-00 सद्धजली ५ श्री रमेश मुनि शास्त्री [उपाध्याय श्री पुष्करमुनि के सुशिष्य] जीवरायो महारायो, गुणाण रयणागरो। साहाए तस्स संजाओ, चोथमल्लो मुणीसरो।। समणसंघ सिंगारो, सोमो ससीसमो सया। धम्म - धुरंधरो धीरो, 000 धण्णो सो य तवोधणो ।२। सन्तो जिइंदियो दन्तो, जिणसासण पंगणे। सहस्सरस्सी सो उग्गओ निम्मलो अहो ।३।। 000 मंजुलं वयणं गीयं, सरणं यावि मंगलं। सज्झाणं जीवणं जेसा, 0.00 हिअयहारियं अहो ।४। जियमोह महामल्लो, निस्सल्लो जणवल्लहो । जइणागम विण्णू जो, वाणीपहू पहावगो।। गुणीवराणं गुरु पोक्खराणं, बुहाण सीसो य मुणी रमेसो। सुभत्ति भावेण पुणो मुणिद, अहं पि वन्दे सिरसा सुवीरं ।। 0-00 0-0-0 1-0-0 0-0-0 0-00 0.00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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