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________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ श्री जैन दिवाकर जी महाराज का समाज के प्रति योगदान : २३१ : श्रद्धा का अर्घ्यं भक्ति भरा प्रणाम - चांदमल मारु, मन्दसौर महामन्त्री अ० मा० जैन दिवाकर संगठन समिति एवं जन्म शताब्दी महासमिति अनेक बार यह देखा गया है कि मानव जहाँ अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए अग्रसर रहता है, वहीं दूसरी ओर मानव ने अपने मनन- चिन्तन से वह अनुभव किया कि शारीरिक सुखों की उपलब्धि ही सब कुछ नहीं है । अतः ऐसी स्थिति में महान् सन्तों ने जगत् के कल्याण के लिए वास्तविक स्थिति को जनता के सामने रक्खा । उन महामुनियों ने अपने चिंतन के द्वारा जो उपलब्धियाँ प्राप्त कीं तथा अति सूक्ष्म दृष्टि से देखा उसे अपने विचार देकर जन-जन के समक्ष रक्खा । आज के युग में धर्म के नाम पर अनेक व्यक्ति नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं तथा धर्म को साम्प्रदायिकता का पुट देने लगते हैं । लेकिन वास्तविकता में ऐसी बात नहीं है । धर्म वह पवित्र सिद्धान्त है, जो मानव को मानव के पास लाकर मानवता सिखाता है । धर्म मानव को हिंसावृत्ति से दूर करके सही अर्थों में अहिंसावादी बनाता है तथा मानव बने रहने की शिक्षा देता है । आज संसार में सर्वत्र अशान्त वातावरण बना हुआ है, भ्रष्टाचार फैला हुआ है उसे एकमात्र धर्म ही दूर कर सकता है | धार्मिक नियमों का उपदेश त्यागी, महान् सन्त ही दे सकते हैं और ऐसे ही सन्तों के उपदेश का प्रभाव मी जन-मानस पर पड़ सकता है । भारतवर्ष में प्रायः अनेक स्थानों पर ऐसे महान् सन्तों के योगदान से ही अहिंसा एवं सत्य धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहा है । हमेशा यह बात देखी गई है कि महान् सन्तों का प्रादुर्भाव परोपकार के लिए होता है उनका अपना व्यक्तिगत कोई स्वार्थ नहीं होता । ऐसे महान् त्यागी सन्तों में श्री जैन दिवाकर, जगत्वल्लभ, प्रसिद्ध वक्ता श्री चौथमलजी महाराज की गणना की जाती है। वास्तव में जैनधर्म के प्रचार व प्रसार के लिए श्री जैन दिवाकर जी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन ही दे दिया था। श्री जैन दिवाकरजी महाराज की बाल्यकाल से ही बहुमुखी प्रतिभा रही है । बहुत छोटी अवस्था में ही अनेक भाषाओं के वे पारंगत हो गये थे । प्रायः देखा जाता है कि उपदेशक और गुरु योग्य व्यक्ति होता है, तो उसकी योग्यता का दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और सब ही समाज उसकी प्रतिज्ञा का महत्व स्वीकार करता है। श्री जैन दिवाकरजी महाराज जैन सिद्धान्तों के पारगत विद्वान् तो थे ही, अन्य दर्शनों के भी तलस्पर्शी जानकार थे । इसके साथ-साथ अच्छे वक्ता, सुलेखक, कवि, विद्याप्रेमी, धर्मरक्षक दया से द्रवित परोपकारी भी थे। अपना जीवन उन्होंने दूसरों के कल्याण के लिये ही समर्पित कर दिया था। आपके प्रवचनों से श्रद्धालु आनन्द-विभोर हो जाते थे। ऐसा कोई भी प्रवचन नहीं होता जिसमें अनेक जीवों को अभयदान एवं अनेक त्याग प्रत्याख्यान नहीं होते । श्री जैन दिवाकरजी महाराज महान् अहिंसावादी महात्मा पुरुष थे । आपके समस्त गुणों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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