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________________ श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २१४ : चौमुखी व्यक्तित्व के धनी -पारस जैन (सिकन्द्राबाद) भगवान महावीर २५००वीं शताब्दी में जैन एकता, समन्वय एवं सम्प्रदायों में परस्पर सद्भावना का सुन्दर वातावरण निर्माण हुआ । साम्प्रदायिक विद्वेष अब अतीत काल की बात हो गयी है । इसका श्रेय उन सन्तों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी एकता का नाद गुंजाये रखा । ऐसे ही विरल सन्तों में जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज का नाम उल्लेखनीय है। उस समय एक सम्प्रदाय के साधु दूसरे सम्प्रदाय के साधुओं के साथ मेल-मिलाप रखें, ऐसा वातावरण नहीं था। उस समय जैन दिवाकरजी ने दिगम्बर आचार्य श्री सूर्यसागरजी तथा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्य श्री आनन्दसागरजी के साथ कई सम्मिलित कार्यक्रम किये । उस समय यह बड़ा ही कठिन साहस का कार्य था। इस प्रकार मुनिश्री के हाथों एकता का बीजारोपण हो गया, जो काल-प्रभाव के साथ आज एक सघन वट वृक्ष की तरह शान्ति व शीतलता की अनुभूति दे रहा है । मुनिश्री चौमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। सरस्वती उनकी वाणी से प्रस्फुटित होती थी। मानवीय अहिंसा में उनकी प्रगाढ़ आस्था थी । अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने मुनि-जीवन स्वीकार किया । ५५ वर्षों तक कठिन साधनामय जीवन बिताया। साधना-काल में जो उपलब्धियाँ होती रहीं, उन्हें वे निरन्तर मानवकल्याण के लिए उपयोग करते रहे। उन्हें अपने जीवन-काल में ही अपरिमित प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा प्राप्त हो गयी । उनका प्रभाव साधारणजन, श्रेष्ठिवर्ग तथा राज परिवारों पर भी था । मेवाड़ के महाराणा, देवास नरेश तथा पालनपुर के नवाब आदि आपके परम भक्त थे। मालवभूमि में मुनिश्री के रूप में विश्व को अद्भुत देन दी है। उनकी वाणी आज भी दिवाकर की तरह मानव-जीवन को प्रभावित करती है। ऐसी महान आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है पतितोद्धारक सन्त -भूरेलाल बया, उदयपुर जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज के सान्निध्य में आने का मुझे जब भी सुयोग मिला, उनकी स्नेहसिक्त अनुग्रहपूर्ण दृष्टि रही और यह भी एक संयोग ही नहीं, जीवन की सुखद स्मृति रहेगी कि मुनिराजश्री के निधन से पूर्व कोटा में जब दर्शन हुए, तो वे बहुत आह्लादपूर्ण थे। जैन मुनियों में ऐसे प्रखर प्रवक्ता, पतितोद्धारक और व्यक्तित्व के धनी मनिराजधी का होना सारी जैनपरम्परा के लिए गौरव की बात है। उनकी चुम्बकीय वाणी भी कइयों के हृदय में गूंजती है और अंधेरे क्षणों में प्रकाश देती रहती है । मैं इस महान् दिवंगत मुनिराजश्री के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। शुभकामनाएँ और प्रणाम -द्वारिकाप्रसाद पाटोदिया, उदयपुर जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज के स्मृतिग्रन्थ की सफलता के लिए श्रीमान् महाराणा साहब (उदयपुर) अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं तथा उपस्थित आचार्य, साध एवं साध्वियों की सेवा में अपना प्रणाम निवेदन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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