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________________ :१६६ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ । प्रेम को हिलोरें उठी... * उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्द्रजी महाराज जब तक देह में जीवन की ज्योति रही, मूढ़ आए त्याग की प्रखर ज्योति जलती रही जगमग जो भी आए अन्धकार आया नहीं वासना का पास कभी सभी लोग दिवाकर घिरता है तम से कभी नहीं। गद्-गद् हो गए मूक पशुओं के प्रति प्रेम में विभोर हो ! करुणा का झरना बहा सीधी-सादी भाषा थी बस, ठौर-ठौर फूका सीधा-सादा उपदेश दया का अमर शंख किन्तु क्या वह जादू था, बलिदान बन्द हुए, मांसाहार बन्द हआ जो भी हृदय में बैठ जाता था ! विलासी राज-भवनों में वाणी की मिठास दया-शून्य सदनों में बस, मिसरी-सी धूली होगी, गूंज उठा दया का जो भी सून लेता सब ओर सिंहनाद ! फिर भूल नहीं पाता था भूल कौन सकता है। बूढ़े, बाल, युवाजन दया का प्रचार यह ? नर और नारी सब जिधर भी निकल गये मग्न ही बैठे रहते जन-मानस में झूम-झम जाते थे ! प्रेम की हिलोरें उठीं, सहस्र-सहस्र कण्ठ श्रद्धा और भक्ति की। जय-जय-जयकार करते. राजा आए गगन और भूमि तब ज्ञानी आए गूज-गूज जाते थे। ---------------- परोपकारी जीवन परमप्रसिद्ध जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज के स्वर्गवास के समाचार से देहली में विराजमान जैनाचार्य पूज्य श्री गणेशी- १ लालजी महाराज तथा उनके अनुयाइयों को परम दुःख हुआ। पूज्य ? जी ने उनके निधन को जैन समाज की एक महान् क्षति बताया। । उन्होंने आगे दिवंगत आत्मा के पूनीत एवं आदर्श-जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि गृहस्थावस्था में मैंने स्वतः उनसे उनके पद सीखे थे। उनका व्यक्तिगत जीवन परोपकार में रत रहा, उनके प्रभावशाली उपदेशों से जैन समाज का बड़ा कल्याण और जैनधर्म का व्यवस्थित प्रचार हुआ। -स्व. आचार्य श्री गणेशीलाल जी महाराज 2-0--0--0--0-0-0 [स्वर्गवास के प्रसंग पर प्राप्त पत्र से] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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