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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : १८२: जन-जन के हृदय मन्दिरके देवता.... ४ उपाध्याय श्री मधुकर मुनिजी अभी सीमित युग ही बीत पाये हैं, जिन्हें स्वर्गवासी हए। यदि यूग पर युग भी बीतते जावेंगे, तो भी जिनका नाम यत्र-तत्र-सर्वत्र गंजता रहेगा, वे थे अविस्मरणीय अभिधा वाले परम श्रद्धय प्रसिद्ध वक्ता पूज्य जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज । श्री जैन दिवाकरजी महाराज प्रबल पुण्य प्रकृति के धनी थे। इसलिए वे जन-जन के हृदयमन्दिर के देवता बने हुए थे। साधारणजन से लेकर बड़े-बड़े जागीरदार व नरेश भी उनकी भक्त मंडली के सदस्य थे। जब प्रसिद्ध वक्ता श्री चौथमलजी महाराज प्रवचन-पट्ट पर विराजमान हो जाते और वहां पर उपस्थित जन-समाज की ओर उनका दक्षिण कर-कमल घूम जाता, तब आबाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष उनसे प्रभावित हो जाते थे और वे सब उनके बन जाते थे। श्री जैन दिवाकरजी महाराज के प्रवचन सीधी-सादी भाषा में अतीव सुमधुर होते थे। उनके प्रवचनों का प्रभाव जितना साधारण जनता पर पड़ता था उतना ही विद्वत समाज पर पड़ता था। उनके प्रवचन सुनकर सभी मंत्र-मुग्ध से बन जाते थे। श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने प्राणि-हित और जन-हित के अनेक कार्य किये। यत्र-तत्र जीव हत्याएँ बन्द करवाईं। पर्व के दिनों में अगते पलवाए । अनेक जागीरदारों से हत्या बन्द करने के पट्ट लिखवाये । ये कदम उनके सदा-सदा के लिए संस्मरणीय रहेंगे। छोटी-छोटी जातियों पर भी उनका बहुत अच्छा प्रभाव था | तेली-तंबोली, घांची-मोची, हरिजन आदि जातियों के लोग भी उनसे पूर्णत: प्रभावित रहते थे। उनके प्रभाव में आकर उन लोगों ने आजीवन मांस-मदिरा शिकार आदि दुर्व्यसनों के प्रत्याख्यान किये। इससे अनेक प्राणियों को अभयदान मिला। श्री जैन दिवाकरजी महाराज एक सफल कवि भी थे। उनकी प्रायः सभी रचनाएं सरल, सरस व समधुर बनी हुई हैं। उन्होंने अनेक चौपाइयों का निर्माण किया तथा विविध रागों में अनेक भजन भी बनाए। उनके प्रायः सभी भजन अतीव लोकप्रिय बने, लोक गीतों की तरह उनके भजनों की कड़ियाँ आज भी जन-जन के मुंह से निकलती रहती है। यद्यपि श्री जैन दिवाकरजी महाराज के दर्शनों का लाभ मुझे अवश्य मिला था, परन्तु उनके सत्संग का लाभ मुझे यथोचित कभी नहीं मिल पाया। यह संयोग की बात है, फिर भी मेरे हृदय में उनके प्रति अपार श्रद्धा है । आज उनकी जन्म-शताब्दी के स्वर्णमय सुअवसर पर उनके संयमी जीवन के श्रीचरणों में मेरी शत-शत श्रद्धांजलि समर्पित है। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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