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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति- ग्रन्थ ।। श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : १७६ : © जग-वल्लभ जैन दिवाकर कविभूषण श्री जगन्नाथ सिंह चौहान 'जगदीश' साहित्यरत्न, भिण्डर (राज.) दोहा आकर आतम-ज्ञान के, भाकर भव्य महन्त । चौथमल्ल मुनि पूज्य थे, जैन सिताम्बर सन्त ।। हिन्दू-मोमिन-जैन पै, चौथ संत की छाप । मानव-धर्म महान् के, पूर्ण समर्थक आप ।। हलपति, धनपति, महीपति, सदा जोड़ते हाथ । दत्तचित्त सुनते सभी, चौथ गुरुवर बात ।। 'जैन दिवाकर' दिव्य थे, जगवल्लभ श्रीखण्ड । दीक्षित कर सुरभित किये, जो थे अमित उदंड ।। सुन्दरी सवैया अरहंत अराधक थे 'जगदीश' व साधक सम्यक् के अवरेखे। सब धर्म गुणग्राहक थे अनुमोदक बोधक केवल ज्ञान के लेखे । खल दानवता प्रतिरोधक थे भल मानवता प्रतिपादक पेखे । हितकारक शुद्र-अछूत सुधारक, जैन दिवाकर चौथ को देखे ।। दोहा 'डीमो"-सम वक्ता बड़े, मुनि 'दिनकर' संसार । शुद्ध संस्कृति श्रमण का, किया विपुल विसतार ।। 'जेन दिवाकर' की गिरा, सुनि स्वयं 'जगदीश' । शीश झुकाते थे उन्हें, बड़े-बड़े अवनीश । घनाक्षरी वाणी पर ध्यान देते यवन, ईसाई-हिन्दू __डालते प्रभाव युवा-उर अनुदार पै। आदिवासी देवदासी शक्ति के उपासी आदि प्रमुदित होते गुरु-विमल विचार पै। १ प्राचीन ग्रीस का महान् वक्ता 'डिमोस्थिनिज' था। जिसकी टक्कर के भाषण देने वाले संसार में गिने-चुने व्यक्ति ही हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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