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________________ : १७१ : ऐतहिासिक दस्तावेज | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ॥धी॥ ॥ श्री गुरुदेवायनमः॥ स्वारूप श्री ठाकुर साहब राज श्री सवाईसिंहजी साहब बचनातू जैन स्वामीजी श्री चौथमलजी महाराज रो आगमन आज चोटीले हुवो संवत् १६६६ विक्रम मिति आषाढ़ विदि १० वार रवि ता० ३०-६-४० को श्रीमान ठाकर साहब सवाईसिंहजी ने धर्म उपदेश सुणियो तिणसं श्रीमान् खूश होकर अगता पालना व पलावणा को हुक्म फरमायो है सो चोटोलारे गांव में नीचे मजब अगता पलसी (१) खुद ठाकुर साहब ग्यारस, अमावस, पुनम ने शिकार नहीं करसी। (२) आम गाँव में चैत्र सुदि १३ ज्येष्ठ सुदि ११ भाद्रव विदि ८ पौष विदि १० शिकार, कसाई खानों, घाणियां, कमारां का निबाव, आरण और कंदोइयां की भटियों बंद रेसी। ऊपर लिखिया मुजब अगता सदा बंद पलसी। सं० १६६६ विक्रम आषाढ विदि १० रविवार ता. ३०-६-४० । द० सवाईसिंह ॥श्री परमेश्वरजी सहाय छ । ॥ श्री आदिनाथजी ॥ स्वारूप श्री महाराज साहेब श्री विजयसिंहजी साहब महाराज प कुमार साहेब श्री रणबहादुरसिंहजी साहेब वचनायत जैन स्वामीजी श्री man.ani१०५ श्री श्री चौथमलजी महाराज का आगमन जोधपुर में सं० १९९७ के चातुर्मास में हुआ और मैंने व्याख्यान व धर्मोपदेश सुना जिससे खुश होकर नीचे मुजब प्रतिज्ञा की है। (१) श्रावण मास में किसी जानवर की शिकार नहीं करूंगा और मेरे पट्टे के गांवों में इस माह में कोई शिकार नहीं कर सकेगा। (२) पौष विदि १० को श्री पार्श्वनाथ भगवान् का जन्म दिवस होने से हमारे पट्टे के गांव में कोई जीव हिंसा न होगी। (३) चैत्र सुदि १३ को श्री महावीर भगवान् का जन्म दिवस होने से हमारे पट्टे के गांवों में जीव हिंसा नहीं होगी। (४) माद्रव सुदि १४ अनन्त चतुर्दशी का अगता पाला जावेगा। (५) श्री पूज्य स्वामी श्री चौथमलजी महाराज का पटे के गांवों में आगमन और विहार होगा तब आगमन और विहार के दोनों अगते पाले जावेंगे। उपरोक्त प्रतिज्ञा का सदैव के लिये पालन किया जावेगा। सं० १९४७ रा आसोज सदि ५ ता० ६ अक्टूबर सन् १९४० ई० -विजयसिंह महाराज साहेब संवत् १९६८ के चैत्र में जैन दिवाकरजी आहोर पधारे । कामदार साहेब एवं जोधपुर के जज शंभुनाथजी साहेब ने मुनि श्री का पब्लीक व्याख्यान कराया। आहोर ठाकुर साहेब उस समय वहाँ नहीं विराज रहे थे । जोधपुर थे । वहाँ से ठाकुर साहेब का सन्देश आया कि मैं जैन दिवाकरजी के उपदेश का लाभ नहीं ले सका इसका मुझे दुःख है । यहाँ आवश्यकीय कार्य होने से रुका हआ हैं, नहीं तो अवश्य वह इस समय आता आदि आदि मुनिश्री को आहोर ठाकर साहेब ने भेंट स्वरूप में जीवदया का पट्टा लिख कर भेजा। वहाँ से विहार कर जैन दिवाकरजी चण्डावल पधारे। चण्डावल ठाकुर साहेब ने एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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