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________________ १५२ ऐतिहासिक दस्तावेज ॥ श्री रामजी ॥ ॥ श्री एकलिंगजी ॥ जैन सम्प्रदाय के परम पूज्य प्रसिद्धवक्ता मुनिजी महाराज श्री चौथमलजी का वैशाख शुक्ला है शनीश्चर सं० १९८४ को भगवानपुरे में पदार्पण हुआ । आपका भाषण साम्प्रदायिक विवाद रहित अहिंसा ब्रह्मचर्यादि सरस भाषा में हृदयग्राही दृष्टान्तों युक्त साधारण गायन के सम्मेलन से सुशोभित होने के कारण जन-साधारण पर विशेष प्रभावशाली हुआ। और मैंने भी सुना तो अहिंसा वेद सम्मत है। जिससे निम्नलिखित प्रतिज्ञाओं के लिए यह विचार किया गया है कि प्रत्येक मनुष्य निज के विचारों से, शारीरिक क्रियाओं को रोकने में स्वतंत्र है । तथापि यावज्जीवन प्रतिज्ञाओं का यथावत् निर्वाह होना देवाधीन होने के कारण परतन्त्र भी है प्रार्थना है ईश्वर निभाये । I (१) छर्रे से शिकार नहीं की जायेगी कि जिससे सहज ही में छोटे जीवों की हिंसा विशेष न होवे | श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ (२) भगवानपुरा पास के तालाब सरूपसागर में और झरणा महादेवजी के स्थान पर भगबानपुरे की सरहद की नदी में भी मच्छिएँ मारने की मनाई करादी जावेगी । (३) पजूषणों में खटीक कसाइयों को जीव हिंसा नहीं करने की हिदायत करादी जावेगा । (४) शेर, चीते के सिवाय निज इच्छा से जहाँ तक पहचाना जा सके मादिन की शिकार नहीं की जावेगी | (५) मच्छी की शिकार नहीं की जावेगी | (६) मच्छी का बोस्त भी खाने के काम में नहीं लाया जायगा । (७) चैत्र सुदि १३ व पौष विद १० के दिन अगता रखा जावेगा । सं० १९८४ का वैषाख सुद ११ (सही) रा० सुजानसिंह, भगवानपुरा ॥ श्री ॥ जा० नं० २४ १६-५-१६३५ ई० Thikana Raipur H. S. जैन सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध मुनि श्री १००८ श्री चौथमलजी महाराज के दर्शन की हमें अत्यन्त आकांक्षा थी । ईश्वर की कृपा से आपका पदार्पण ता० १५-५-१९३५ ई० को रायपुर ग्राम में हुआ । आपके यहाँ दो बड़े प्रभावशाली व्याख्यान हुए । आपके द्वारा उपदेशामृत पान करके हम और हमारे यहाँ का कुल समाज अत्यन्त प्रसन्न हुआ। आप वास्तव में अहिंसावाद के प्रभावशाली व्याख्यान देने वाले महात्मा हैं । मैं महाराज श्री के भेंट स्वरूप निम्नांकित प्रतिज्ञाएँ करके प्रतिज्ञापत्र महामुनि को समर्पित करता है। (१) इस ग्राम में पर्युषण पर्व व जन्माष्टमी पर धार्मिक अगते पाले जायेंगे । (२) चैत्र शुल्का १३ श्री महावीर स्वामी का व पौष कृष्णा १० श्री पार्श्वनाथजी का जन्म दिन होने से इन तिथियों पर भी धार्मिक अगते पाले जायेंगे । (३) शराब एक दूषित पदार्थ है । इसका सेवन हम कभी आजन्म पर्यन्त नहीं करेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only ( सही अँग्रेजी में) राव जगन्नाथ सिंह www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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