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________________ श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ J जीवदया और सदाचार के अमर साक्ष्य : १४४ : X + ++ ++ ++ + ॥ श्री चतुर्भुजजी ॥ श्री रामजी ॥ जन सम्प्रदाय के प्रसिद्ध उपदेशक मनि महाराज श्री चौथमलजी का इस नगर बदनोर में सं० १९९० का मृगशिर कृष्णा सप्तमी को in* पधारना हुआ । आपके व्याख्यान गोविन्द स्कूल में मृगशिर कृष्णा ११ व १२ को श्रवण किये । अत्यन्त प्रसन्नता हुई । श्रोताओं को भी पूर्ण लाभ हुआ। आपका कथन बड़ा प्रभावशाली है । जहाँ कहीं आपका उपदेश होता है, जनता पर बड़ा भारी असर पड़ता है । यहाँ भी यह नियम किया गया है कि आसोजी नवरात्रि में पहले से पाड़े बलिदान होते हैं उनमें से आइन्दा के लिये दो पाड़े बलिदान कम किये जावें जिसकी पाबन्दी रखाया जाना जरूरी है लिहाजा हु० नं० ४४४ के वास्ते तामील असल शरस्ते खास में व एक-एक नकल महक्मे माल व हिसोब दफ्तर में दी जावे और यह एक नकल इसकी मुनि महाराज श्री चौथमलजी की भेंट की जावे । सं० १६६० का मृगशिर कृष्णा १२ मंगलवार तारीख १४ नवम्बर सन् १६३३ ईस्वी। श्री एकलिंगजी ! ॥श्री रामजी ।। मोहर छाप जैन सम्प्रदाय के प्रसिद्ध वक्ता पंडित मुनि श्री चौथमलजी महासुलम्बर । राज का भिण्डर की हवेली मु० उदयपुर मे आज व्याख्यान हुआ वो ........... श्रवण कर चित्त बड़ा आनन्दित हआ। अहिंसा धर्म का महाराज श्री ने सत्य उपदेश दिया वह बहुत प्रभावशाली रहा । इसलिए नीचे लिखी प्रतिज्ञा की जाती है (१) श्रीमान् मुनि श्री चौथमलजी महाराज के पधारने व विहार करने के दिन सुलम्बर में आम अगता रहेगा। २) चैत्र शुक्ला १३ भगवान श्री महावीर स्वामी का जन्म दिन है सो हमेशा के लिए आम अगता रहेगा। (३) पौष कृष्णा १० भगवान पार्श्वनाथजी का जन्म दिन है सो हमेशा के लिए आम अगता पलाया जावेगा। (४) नवरात्रि में पाड़ा को लोह होवे है सो हमेशा के वास्ते एक पाड़े को अमऱ्या किया जावेगा। (५) मादा जानवर की शिकार जान करके नहीं की जावेगी। (६) मर्गा जंगली व शहरी, हरियाल, धनेतर, लावा, आड़ और भाटिया के अलावा दीगर पखेरू जानवरों की शिकार नहीं की जावेगी और जीमण में नहीं आवेगा। (७) खास सुलम्बर में तालाब है उसमें बिला इजाजत कोई शिकार न खेले । इसकी रोक पहले से है और फिर भी रोक पूरे तौर से रहेगी। -लिहाजा हुक्म नं० ४१४ असल रोबकार हाजा सदर कचहरी में भेज लिखी जावे के मुन्दरजे सदर कलमों की पाबन्दी पूरे तौर रखने का इन्तजाम करें और नकल इसकी सूचनार्थ श्रीमान् प्रसिद्ध वक्ता पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज के भेंट स्वरूप भेजी जावे और निवेदन किया जावे के कितनीक जीव हिंसा वगैरा बातें आपके सुलम्बर पधारने पर छोड़ने का विचार किया जावेगा। फक्त सं० १९८३ मार्गशीर्ष कृष्णा ११ मोमवार ता० ३०-११-२६ ई० । र नवरात्रि और दशहरे में जितने पाड़े मारे जाते हैं उनमें एक पाड़े की कमी की जावेगी। याने हमेशा के लिए एक पाड़े को अमर्या कर दिया जावेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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