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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ :१४३ : ऐतिहासिक दस्तावेज ॥ श्री रामजी ॥ ॥ श्री एकलिंगजी॥ रावतजी साहिब । मोहर छाप Batharda के हस्ताक्षर बाठरड़ा Udaipur (अंग्रेजी लिपि में) Rajputana स्वस्ति श्री राजस्थान बाठरड़ा शुभस्थाने रावतजी श्री दलीपसिंहजी वंचनात् । जैन साधुमार्गीय २२ सम्प्रदाय के प्रसिद्धवक्ता स्वामी श्री चौथमलजी महाराज का शुभागमन यहाँ आसाढ़ विदी ३० को हुआ। यहाँ की जनता को आपके धर्म-विषयक व्याख्यानों के श्रवण करने का लाभ प्राप्त हुआ । आपका व्याख्यान राजद्वार में भी हुआ। आपने अपने व्याख्यान में मनुष्य जन्म की दुर्लभता, आर्यदेश में, सत्कुल में जन्म पूर्णायु सर्वाङ्ग सम्पन्न होने के कारणभूत धर्माचरण को बताकर धर्म के अंग स्वरूप क्षमा, दया, अहिंसा, परोपकार, इन्द्रिय-निग्रह, ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, ईश्वर स्मरण भजन आदि सदाचार का विशद रूप से वर्णन करके इनको ग्रहण करने एवं अधोगति को ले जाने वाले हिंसा, क्रोध, व्यभिचार, मिथ्याभाषण परहानि विषय परायणता आदि दुराचारों को यथाशक्य त्यागने का प्रभावोत्पादक उपदेश किया जो कि सनातन वैदिक धर्म के ही अनुकूल है। आपके व्याख्यान सार्वदेशिक, सार्वजनिक, सर्व धर्म सम्मत किसी प्रकार के आक्षेपों रहित हुआ करते हैं । यहाँ से आपके भेंट स्वरूप निम्नलिखित कर्त्तव्यपालन करने की प्रतिज्ञाएँ की जाती हैं। १-हिंसा के निषेध में(१) नारी जानवर की आखेट इच्छा पूर्वक नहीं की जायगी। (२) पटपड़ का मांस भक्षण नहीं किया जायगा । (३) मोर कबूतर आदि पक्षियों की शिकार प्रायः मुसलमान लोग करते हैं उनको रोक करा दी जायगी। (४) नवरात्रि दशहरे पर जो चौगान्या वा माताजी के बलिदान के लिए पाड़े वध किये जाते हैं। वे अब नहीं किये जायेंगे। (५) तालाब फूल सागर में आड़ें नहीं मारी जायेंगी। २-निम्नलिखित तिथियों तथा पर्यों पर अगते रखाये जायेंगे। यानी खटीकों की दुकानें, कलालों की दुकानें, तेलियों की घाणिये, हलवाइयों की दुकानें, कम्हारों के आबे आदि बन्द रहेंगे। (१) प्रत्येक मास में दोनों एकादशी, पूर्णिमा का दिन । (२) विशेष पर्वो पर जन्म अष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि वसंतपंचमी। चैत्र सुदी १३, ज्येष्ठ वदी ५। (३) श्राद्ध पक्ष में। (४) स्वामी श्री चौथमलजी महाराज के यहाँ आगमन व प्रयाण के दिन । ३-अभयदान में ५ पाँच बकरों को जीवदान दिया जायगा। उपरोक्त कर्तव्यों का पालन कराने के लिए कचहरी में लिख दिया जावे। इसकी एक नकल श्री चौथमलजी महाराज के मेंट हो और एक नकल समस्त महाजन पंचों को दी जावे। शुभ मिती सं० १९८२ का आसाढ़ सुदी ३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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