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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ स्मृतियों के स्वर : ११८ : लोहामंडी सोनामंडी बन गई * सोहनलाल जन (भूतपूर्व अध्यक्ष शहर कांग्रेस कमेटी, आगरा ) श्रद्धय जैन दिवाकर प्रसिद्ध वक्ता श्री चौथमलजी महाराज सचमुच में एक महापुरुष थे । सम्वत् १९९४ (सन् १९२६) में आप लोहा मण्डी आगरा पधारे तथा यहाँ का चातुर्मास मनाया। जिस समय आप विहार करते हुए भरतपुर पधार गये थे तो लोहामण्डी से सेठ रतनलालजी जैन के नेतृत्व में आगरा के नवयुवकों का एक प्रतिनिधि मंडल भरतपुर से आगरा तक साथ-साथ आया था। मुनिजी के साथ उस समय चौदह संत थे। विशेष उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज सब कार्यों का नेतृत्व करते थे । चातुर्मास में विशेष रूप से 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' का हिन्दी-उर्दू में प्रकाशन लोहामण्डी, आगरा में ही हुआ । और निर्ग्रन्थ प्रवचन सप्ताह का आयोजन सर्वप्रथम यहीं पर किया गया। जिसमें भारत के कौने-कौने से हजारों नर-नारियों ने इस सप्ताह में उत्साह पूर्वक भाग लिया । Jain Education International जैन दिवाकरजी महाराज के चातुर्मास में प्रत्येक दिन हिन्दू-मुसलमान आदि सभी धर्मों के अनुयायी सैकड़ों की संख्या में पधारकर मुनिजी के उपदेशों से लाभ लेते थे। मुनिजी की इतनी तेज आवाज थी कि बिना लाउडस्पीकर के ही शान्तिपूर्वक श्रोता प्रवचन का लाभ लेते थे। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर कितने ही मुसलमान तथा मांसाहारियों ने शराब व माँस का त्याग कर दिया था। भगवान महावीर स्वामी के जीवन चरित्र का अंग्रेजी में अनुवाद कराकर प्रकाशित किया गया। जैन रामायण का भी प्रकाशन यहीं से किया गया। जैन भवन लोहामण्डी में प्रातः ६ बजे से रात के १० बजे तक बराबर स्थानीय तथा बाहर के भाइयों का तांता लगा रहता था। जैन दिवाकरजी महाराज के चातुर्मास में डाक-तार का इतना आदान-प्रदान होता था कि भारत सर कार को लोहामण्डी में जैन भवन के पास ही लोहामण्डो डाकघर की स्थापना करनी पड़ी जो अब तक कार्यरत है । जैन दिवाकरजी महाराज के चातुर्मास में ही कुछ विशेष घटनाएँ उल्लेखनीय हैं । —सेठ रतनलाल जैन मीतल आगरा निवासी की सुपुत्री शीलादेवी जैन का सम्बन्ध साहू रघुनाथदास ( धाम - पुर निवासी) के सुपुत्र महावीर प्रसाद गुप्ता के साथ हो गया था। इसी बीच में विवाह के कार्य में बड़चन आई; इसी सम्बन्ध में सेठजी को धामपुर जाना पड़ा। धामपुर से लौटते समय बरेली एक्सप्रेस बरहन और ढूंडला के बीच में ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई । इसी ट्रेन से सेठजी आगरा आरहे थे । इस समाचार को सुनकर लोहामण्डी के जैन-अर्जन भाइयों में बड़ी हलचल मच गई। जैन दिवाकर जी महाराज ने भाइयों को शान्त करते हुए घोषणा की कि सेठजी सकुशल हैं और स्टेशन पर दूसरों की सहायता कर रहे है बहुत से प्रेमी लोग कार से व डाक्टर सरकार अपनी एम्बुलेंस से घटनास्थल पर पहुँचे। जैसा जैन दिवाकरजी महाराज ने कहा, वैसा ही सत्य पाया। उनके आशीर्वाद से ही शादी का भी संकट दूर हुआ और सकुशल विवाह का कार्य सम्पन्न हुआ । विवाह के उपलक्ष में जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से सेठ रतनलालजी ने पुस्तकालय का महत्व समझा एवं पुस्तकालय के भवन का निर्माण कराया जो आज तक वीरपुस्तकालय के रूप में जनता की सेवा कर रहा है। लाला मुंशीलालजी बाग अन्ता लोहामण्डी के सन्तान होकर मर जाती थी। ऐसा चार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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