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________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ :६७: उदय :धर्म-दिवाकर का वाणी सुनने के लिए आती है, राग-द्वेष की बातें सुनने नहीं । जब उनका मन निर्मल होगा तो वे अपने शब्दों के लिए खुद ही पश्चात्ताप करेंगे।' कितनी समता थी जैन दिवाकरजी के मन-मस्तिष्क में ! दिगम्बर जैन आचार्य के साथ सम्मिलित व्याख्यान झालरा पाटन-इस क्षेत्र में मुनिराजों का आगमन कम ही होता है । वृद्धावस्था होते हुए भी जैन दिवाकरजी महाराज पधारे। उनके दस व्याख्यान हुए। इससे वहां काफी जागृति आई। जैन-अजैन सभी लोगों ने काफी संख्या में प्रवचन लाम लिया । त्याग प्रत्याख्यान भी हुए। आप मॉडक पधारे । दिगम्बर जैन आचार्यश्री सूर्यसागरजी महाराज वहाँ पहले से विराजमान थे। उन्होंने कुछ श्रावकों द्वारा सम्मिलित व्याख्यान की इच्छा प्रगट की। आपने सहर्ष स्वीकृति दे दी। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्यश्री आनन्दसागरजी महाराज भी वहीं थे। सम्मिलित व्याख्यान होने लगे। इन व्याख्यानों का श्रोताओं पर बहुत अधिक अच्छा प्रभाव पड़ा। प्रवचन समाप्ति पर आचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज ने आपसे कहा "जिस समय आप रामगंज मंडी में प्रवचन दे रहे थे उस समय मैं गोचरी हेतु निकला था। मेरी इच्छा थी कि यदि आप आमंत्रित करें तो मैं भी दो शब्द कहूँ।" "मुझे तो कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन संकोच का कारण यह रहा कि किसी अन्य दिगम्बर साधु ने हमारे साथ आप जैसा सद्व्यवहार नहीं किया था।"-आपश्री ने बताया । इसके बाद तीनों संतों में स्नेहपूर्ण बातचीत होती रही। जैन दिवाकरजी महाराज मंडला में एक भवन, की दूसरी मंजिल में विराज रहे थे। आचार्यश्री सूर्यसागरजी महाराज नीचे से निकले । जैन दिवाकरजी महाराज ने कहा "मैं तो बड़ी देर से आपकी प्रतीक्षा में था।" आचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज ने नीचे से ही उत्तर दिया"आप हमसे बड़े हैं, अब तो कोटा में ही मिलन होगा।" अन्तिम चातुर्मास (सं० २००७) : कोटा-ऐक्य का आधार इस चातुर्मास में तपस्वी श्री माणकचन्दजी महाराज ने ४२ उपवास किये। उस दिन भी तीनों सम्प्रदायों के आचार्यों का व्याख्यान सम्मिलित हुआ। श्री मोहनलालजी गोलेच्छा हमीरगढ़ वालों की दीक्षा गुरुदेव के पास हुई। पत्नी और पुत्र तथा परिवार छोड़कर आपने दीक्षा ली । सं० २००७ में कोटा में दिगम्बर जैन आचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आनन्दसागरजी महाराज और जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज-तीनों का वर्षावास हुआ। प्रत्येक बुधवार को सम्मिलित प्रवचन होते। तीनों संत परस्पर वात्सल्यभाव प्रदर्शित करते। जैन दिवाकरजी महाराज एकता की कड़ियाँ जोड़ने में लगे। कलकत्ता से तेरापंथ समाज के अग्रगण्य दानवीर सेठ सोहनलालजी दुग्गड़ दर्शनार्थ आए । तीनों संतों में सौहार्द देखकर हर्षविभोर हो गए। प्रसन्न होकर हृदयोद्गार व्यक्त किए "पूज्य महाराज श्री ! आप तीन संतों के मिलन से तीन दिशाओं में तो उजाला हो गया है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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