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________________ :६५: उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । चमके सभा के अन्दर, तारों में चाँद जैसे । सूरत निरख-निरख कर, तरपत हुए हैं नयना ॥ ३॥ तारन-तरन तुम्ही हो, प्यारे गुरु जहाँ में। तुमको जो कोई छोड़े, उसका कहाँ ठिकाना ।। ४ ।। गफलत में सो रहा था, बरबाद हो रहा था। अब खुल गई है आँखें, हीरे का मोल जाना ॥ ५॥ करना कसूर मेरा, सब माफ अन्न-दाता। अर्जी करे "कन्हैया", माफी जरूर देना ॥ ६ ॥ रतलाम श्रीसंघ के अध्यक्ष श्री नाथूरामजी सेठिया ने चातुर्मास समाप्ति पर नीम चौक श्रीसंघ की ओर से 'श्री महावीर नवयुवक मंडल' एवं 'श्री धर्मदास मित्रमंडल' को चाँदी की तश्तरी मेंट दी। कर्मचारियों, जैन स्कूल की अध्यापिकाओं तथा स्वयंसेवकों आदि को वस्त्र एवं नकद रकम से सम्मानित किया। विहार के दिन श्री चांदमलजी गाँधी ने सपत्नीक शीलव्रत धारण किया। खुशी में २०१ रुपये उछाल किये। निषेध करने पर भी अन्य जैन-अजैन बन्धुओं ने लगभग १००० रुपये उछाल दिये। स्टेशन पर जैम-अजैन जनता एवं सिनेमा मालिक मुल्ला नजर अलीजी ने व्याख्यान देने की प्ररजोर प्रार्थना की । परिणामस्वरूप दो-तीन व्याख्यान वहाँ हुए। इस प्रकार जैन दिवाकरजी महाराज का रतलाम (सं० २००६) का चातुर्मास अत्यन्त गौरवशाली रहा। इसमें संघ ऐक्य योजना में प्रगति हुई, कान्फ्रेंस के डेपूटेशन को सफलता मिली। गुरुदेव के प्रवचनों में श्रोताओं की अत्यधिक संख्या रही। आपके उपदेशों से नवयुवकों में अपूर्व उत्साह भरा तथा धर्म जागृति हुई। पर्युषण में चार-पांच हजार दर्शनार्थी बाहर से आए । इन सब कारणों से इसे ऐतिहासिक चातुर्मास की संज्ञा दी गई है। रतलाम चातुर्मास में ही आपको ज्ञात हुआ कि ब्यावर में स्थानकवासी सम्प्रदाय के मुनिवरों का सम्मेलन होने की चर्चा चल रही है। इस सम्मेलन में संगठन पर विचार-चर्चा होनी थी। नागदा में मालवकेसरी पं० मुनि सौभागमलजी महाराज का मिलन होने पर विचार-विमर्श करके उपाध्याय पं० प्यारचन्दजी महाराज तथा मालवकेसरीजी महाराज का सम्मेलन में जाने का निश्चय हआ। उपाध्याय पं० मुनि प्यारचन्दजी महाराज को ब्यावर भेजते समय जैन दिवाकरजी महाराज ने अपना सन्देश दिया ___ "संघ के कल्याण के लिए अपने सम्प्रदाय की सभी उपाधियों का त्याग कर देना । यदि सभी मनिवर एकमत हो जाये तो आचार्य अपने संतों में से मत बनाना। आचार्यश्री आनन्द ऋषिजी महाराज को ही आचार्य स्वीकार कर लेना।" उपाध्यायजी महाराज ब्यावर पहुँचे । ६ सम्प्रदायों के मुनिवरों ने विचार-विमर्श करके एक समाचारी का निर्माण कर लिया; किन्तु एक आचार्य स्वीकार करने में गतिरोध उत्पन्न हो गया। ५ सम्प्रदाय तो सहमत हो गए; किन्तु चार सहमत नहीं हुए। फलतः 'श्री वीर वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ' की स्थापना हुई। श्री आनन्दऋषिजी को आचार्य बनाया गया। उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज ने रामपुरा में गुरुदेव के दर्शन किए । यहाँ महावीर जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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