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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ · एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५४ : इसी चातुर्मास में 'ॐ शान्ति' जप के साथ लगभग २१०० आयंबिल हुए। श्री रूपराजजी संचेती (आयु ३५ वर्ष) ने यावज्जीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया । जोधपुर संघ में सिहपोल को लेकर जो उम्र विवाद चल रहा था उसमें आपके शांति प्रेरक प्रवचनों ने शांति का वातावरण बनाया एकता के प्रयत्न प्रारम्भ हो गए। तीन वर्षों से इन्द्र चल रहा था। भादवा वदी १४ को व्याख्यान में जोरदार शब्दों में जैन समाज में चल रहे झगड़े को मिटाकर शांति का सन्देश दिया। एक पक्ष ने श्री मगरूपजी भंडारी (सिटी कोतवाल) श्री जसवन्त राज जी मेहता को पंच बना दिया। श्री चन्दनमल मूथा ने इनको स्वीकार किया और पंचों ने व्याख्यान में फैसला सुनाया जिसे सुनकर दोनों पक्षों के साथ हजारों व्यक्ति पंचों की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करने लगे। फैसले के बाद गुरुदेव ने फरमाया कि समाज में शांति हो गई, सो तो प्रसन्नता की बात है। आप लोग यहाँ क्षमायाचना कर लेवें। जिन मुनिराजों का अपमान किया है उनके पास जाकर क्षमायाचना करनी चाहिए। दोनों पक्षों की तरफ से शाहजी नवरतनमलजी मोदी, शंभुनाथजी चंदनमलजी मुथा, सेठ लक्ष्मीरामजी सांड, भंवरलालजी जालोरी, नारमलजी पारख, मोतीलालजी, रातड़िया, मूलचन्द जी लूंकड़, सलेराजजी मुणोत आदि नेताओं ने समास्थल पर ही प्रेम के साथ हाथ में हाथ डालकर समत- खामना किये। इस दृश्य से जनता बहुत हर्षित हो गई। इस कार्य में राय साहब विलमचन्दजी भण्डारी और हुक्मीचन्द जैन का सहयोग प्रशंसनीय रहा। भादवा सुदी ७ के व्याख्यान में श्री रा०रा० नरपतसिंहजी (मिनिस्टर इन वेटिंग ) ठाकुर बसतावरसिहजी आदि विशिष्ट नागरिकों ने दोनों पक्षों, पंचों और शांति-सहयोगियों को धन्यवाद दिया। सभी ने जैन दिवाकरजी महाराज का हार्दिक आभार माना। इस संप की खुशी में दयाव्रत का आयोजन किया गया जिसमें समाज के कई मुख्य व्यक्ति सम्मिलित हुए । चरणोदक Jain Education International जोधपुर चातुर्मास की ही घटना है। भोपालगढ़ (मारवाड़) के निकटवर्ती कूड़ी गाँव की पुत्रवधू सौ० कल्याणबाई कर्णावट अपने पीहर जोधपुर आई। महाराजश्री के प्रवचन वह भी बड़ी श्रद्धाभक्ति से सुनती। एक दिन वह शीशी में गुलाबजल भर लाई और एक भाई को कहकर गुरुदेव के पाद प्रक्षालित करके पुनः शीशी में भरवा ही लिया। महाराजश्री मना करते ही रह गए । यथासमय वह अपनी ससुराल पहुँची। उसकी ससुराल में घर का कामकाज करने के लिए एक वृद्धा आती थी। एक दिन उसने कल्याणवाई को अपनी व्यथा सुनाई - "सेठानीजी ! आपके पीहर जाने के बाद मेरे लड़के की अखें दुखने आ गई। बहुत इलाज कराया पर कोई फायदा न हुआ। वह अन्धा हो गया है। अब मैं मेहनत-मजदूरी करके पेट म या उसकी सेवा करूँ। मैं तो बड़ी मुसीबत में फँस गई हूँ ।" । कल्याणबाई के हृदय में करुणा जागी वृद्धा और उसके पुत्र की कल्याणकामना करते हुए उसने चरणोदक वाली शीशी देकर कहा "मांजी ! जोधपुर से मैं बहुत अच्छी दवाई लाई हूँ इसे लगातार विश्वासपूर्वक लड़के की आँख में डालो। उसे दीखने लगेगा ।" वृद्धा ने दवाई डाली और १५-१६ दिन में ही उस लड़के की नेत्रज्योति लौट आई । वृद्धा ने कल्याणबाई को भरपेट आशीषें दीं। कल्याणबाई गुरुदेव की कल्याणकारी शक्ति से विभोर हो गईं। दीपावली के बाद कल्याणबाई उस वृद्धा और उसके पुत्र को साथ लेकर गुरुदेव के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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