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________________ : ८३ : उदय : धर्म-दिवाकर का || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ साथ १७ साधु और थे। राजराणा कल्याणसिंहजी ने प्रवचन सुने । आने के दिन अगता पलवाया। बड़े साथ ओसवालों के झगड़े का अन्त किया। निम्बाहेड़ा पधारने पर हिन्दू-मुस्लिम भारी संख्या में आपके व्याख्यान में उपस्थित हए। मुस्लिम भाइयों ने मांस खाने का त्याग किया। वहाँ से चित्तौड़ पधारे । करीब ७००० मनुष्यों की उपस्थिति में महावीर जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई गई। यहाँ श्री वृद्धिचन्द डंक डूंगला वालों ने दीक्षा ली; उनका नाम विमल मुनि रखा गया। अनेक मनुष्यों ने मद्य-मांस, तम्बाकू-सेवन आदि के त्याग लिए। श्री पुखराजजी भंडारी, श्री सुकनराजजी गोलिया मैसर्स हीराचन्द भीकमचन्द, लाडजी महेश्वरी आदि ने अगला चातुर्मास जोधपुर में करने की प्रार्थना की । उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई। चित्तौड़ से विहार करते हुए आपश्री भीलवाड़े पधारे । यहाँ हाकिम श्री केशरीसिंहजी, जज दुलेसिंहजी ने भी प्रवचन का लाभ लिया। सार्वजनिक प्रवचन में लगभग २००० व्यक्ति उपस्थित होते थे। यहाँ जेल के कैदियों को भी उपदेश दिया। उन बन्दियों ने भी चोरी, जीवहिंसा के त्याग किये । वहाँ से विहार कर गुडले पधारे । जागीरदार श्री शुभसिंहजी ने उपदेशों से प्रभावित होकर मैंसे का बलिदान बन्द किया। श्रावण में शिकार करने का और हिंसक पशुओं के सिवाय अन्य पशुओं का शिकार करने का त्याग किया। वर्ष में दो बकरे अमरिए करना आदि अनेक त्याग किए। कोसीथल होकर नांदसा पधारे । नांदसा जागीरदार के काका जयसिंहजी ने जीवहिंसा करने का त्याग किया । ताल ठाकुर साहब श्री रणजीतसिंहजी ने अनेक जीवों की हिंसा का त्याग किया। कुंवर दौलतसिंहजी ने पक्षी, हिरण एवं बकरे की हिंसा स्वयं न करना और न अन्य से कहकर करवाना-यह नियम लिया। सुरतपुर के ठाकुर सवाईसिंहजी ने सुअर के सिवाय अन्य सभी जानवरों की हिंसा त्याग दी। बरार में भी उपकार हुआ। लसाणी के ठाकुर साहब ने जीवन भर के लिए शिकार का त्याग किया। महीने में १५ दिन ब्रह्मचर्य पालन करने का नियम लिया। ठेकरवास, देवगढ़, हरियारी आदि में भी इसी प्रकार के उपकार हुए। चंडावल के ठाकुर श्री गिरधारीसिंहजी प्रवचनों से बहुत प्रभावित हुए। इन्होंने अपनी जागीर के छह गांवों में पर्युषण के प्रथम और अन्तिम दिन, महावीर जयन्ती, पार्श्वनाथ जयन्ती के दिन पूर्णरूप से अगते पालने का पट्टा लिखकर दिया। पाली में प्रवचनों में जैन-अजैनों ने बड़ी संख्या में लाभ लिया। सेठ सिरेमलजी कांठेड की ओर से विद्यादान और अकाल पीड़ितों के लिए भी सहस्रों रुपये दिए गए। वहाँ से आपश्री जोधपुर पधारे । __ पैंतालीसवाँ चातुर्मास (सं० १९९७) : जोधपुर सं० १९९७ का चातुर्मास १५ मुनियों के साथ में जोधपुर में हुआ। आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक वेश्याओं ने वेश्यावृत्ति का त्याग कर दिया। इस चातुर्मास से पूर्व जैन दिवाकरजी सरदारहाईस्कूल में पधारे। वहाँ प्रवचन दिए। एक व्याख्यान आर्यसमाज में भी हुआ। फिर आहोर के ठाकुर साहब की हवेली में व्याख्यान होने लगे। लगभग ५००० मनुष्यों की उपस्थिति में अनेक राज्याधिकारी, वकील एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होते थे। सार्वजनिक व्याख्यान में करीब ७००० की उपस्थिति होती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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