SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ : ७३ : उदय : धर्म-दिवाकर का लीजिए।" वितंडावादी निरुत्तर हो गए। उनके हृदय ने स्वीकार कर लिया कि प्रतिमा भगवान नहीं, बिम्ब मात्र है। बीजापुर से आप औरंगाबाद पधारे। वहाँ भी सिनेमाहॉल में व्याख्यान होते थे। हिन्दूमुस्लिम सभी लोग बड़ी संख्या में आते और प्रवचन लाभ लेते । कई त्याग प्रत्याख्यान हुए। औरंगाबाद से आप जालना पधारे। वहां एक ऑइलमिल में आपका सार्वजनिक प्रवचन हुआ । यह स्थान शहर से लगभग एक किलोमीटर दूर था। वहाँ भी हजारों की संख्या में हिन्दूमुस्लिम उपस्थित हुए। इस विशाल जन-समूह को देखकर लोग परस्पर कहने लगे कि-'पहले इतने लोग कभी भी व्याख्यान सुनने के लिए एकत्र नहीं हुए। ऐसे अपरिचित गांव में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का उपदेश सुनने के लिए आना गुरुदेव के पुण्य और त्याग का प्रभाव है।' अनेक स्थानों पर भ्रमण करते हुए आप मनमाड (महाराष्ट्र) पधारे । वर्षावास शुरू हो गयो । धर्म की धारा बहने लगी। चल भागी एक दिन प्रातःकाल आप बाहर भूमि से लौट रहे थे। एक संकरी गली में होकर आपके कदम स्थानक की ओर बढ़ रहे थे। गली के नुक्कड़ पर ही एक मकान था। इस मकान में एक जनेतर परिवार रहता था। घर में काफी शोर-गुल हो रहा था। आपके कदम उसी की ओर मुड़ गए । शोर-गुल का कारण यह था कि उस घर की गृहस्वामिनी चुडैल के प्रकोप से काफी दिन से ग्रसित थी। इस बाधा के कारण वह दुर्बल भी बहुत हो गई थी। इस समय भी चुडैल उसे तंग कर रही थी। अनेक जन्त्र-मन्त्र, जादू-टोने कराए गए, लेकिन चुडैल पर कोई प्रभाव न पड़ा। वह अहंकार में भरकर बार-बार एक ही बात कहती थी-'इसने मल-मूत्र त्याग कर मेरा अपमान किया है, अब इसे साथ लेकर ही जाऊँगी।' लोग विवश थे और गृहस्वामी निरुपाय । चुडैल उत्पात करती थी और वे निरीह बने रहते थे। महाराजश्री के चरण उस घर की ओर मुड़े तो चुडैल चीखने लगी"जाती है, जाती है। फिर कभी इधर को मुंह भी नहीं करूंगी।" उपस्थित जन चकित होकर पूछने लगे "अब क्यों जाती है ? अभी तक तो इस स्त्री को साथ ले जाने की रट लगाए हई थी। "अब क्या विशेष बात हो गई ?" चडैल का भयभीत स्वर निकला "किसी मन्त्र-यन्त्र का प्रभाव मुझ पर नहीं होता; लेकिन ये मुंहपत्ती वाले साधु जो इधर ही आ रहे हैं उनके सामने मैं पलभर भी नहीं टिक सकती। अरे कोई रोको उन्हें । यहाँ मत आने दो।" अब लोग क्यों उसकी बात मानते ! महाराज को क्यों रोकते ! तुरन्त महाराज साहब को आदर सहित बुला लाये । अहिंसा के सामने हिंसा नहीं टिक सकती, प्रकाश के सामने अन्धकार भाग जाता है। घर में आपके चरण पड़ते ही चुडैल छूमन्तर हो गई। भूमि पर पड़ी महिला को आपने मंगल पाठ सुनाया। वह सचेत होकर उठ-बैठी। अस्त-व्यस्त वस्त्र ठीक करके गुरुदेव को वन्दन किया । सभी उपस्थित जनों ने श्रद्धा से नत-मस्तक होकर चरण स्पर्श किये। चडैल सदा को चली गई थी। गहिणी स्वस्थ हो गई। पूरा परिवार आपके प्रवचनों में आने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy