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________________ नीर-छीरके समीकरणमें निर्भय श्वेत मराल ! ___ आशुकवि श्री कल्याणकुमार जैन 'शशि', रामपुर न्याय-नीति मानस्तम्भों के दृढ़तम मूलाधार । विविध माध्यमों द्वारा संस्कृति नैया के पतवार । सेवा. शिक्षा. धर्मवद्धि के, हरे वक्ष फलदार । नयी चेतना, नई प्रगति के, कर्मठ पहरेदार ।। शत अभिनन्दनीय जीवन, बहु चर्चित उन्नत-भाल । डाक्टर न्यायाचार्य कोठिया, श्री दरबारी लाल ।। धर्मोन्नति, समाज उन्नति के, किये निरन्तर काम । ऐसे सारभूत जीवन, कब पाते हैं विश्राम ॥ यह तब ही सम्भव है जब हो, अपना सुख नीलाम । जो यह हृदयङ्गम न कर सके, रहे सदा नाकाम ।। धरती को ऊर्जा देती है चलती हुई कुदाल । डाक्टर न्यायाचार्य कोठिया श्री दरबारीलाल ।। सर्वाङ्गीण सफलता के, जीवन भर किये उपाय । रहे विवादों से सदैव ही, निर्विवाद निरुपाय ।। पास न आने दिया पतित, उत्पीड़क मान कषाय । मनोयोग से सदा समर्पित, रहे समाज-हिताय ।। जिज्ञासा को पथ देती, यह जलती हई मशाल । डाक्टर न्यायाचार्य कोठिया श्री दरबारी लाल ।। सर्वमान्य सर्वत्र आपको, विद्वत्ता मय छाप । मुमुक्षुओं के लिये आपको, पथ-प्रदर्शक पगचाप ॥ मधुर स्मृति को लीक बनाते, बौद्धिक कार्य-कलाप । तर्काश्रित प्रशस्त वाणी में, कहीं न रञ्च प्रलाप ।। नीर छीर के समीकरण में निर्भय श्वेत मराल । डाक्टर न्यायाचार्य कोठिया श्री दरबारी लाल ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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