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________________ द्रोणगिरिक उत्सवों में डॉ. कोठिया .श्री कमल कुमार जैन, द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरिका भारतके तीर्थक्षेत्रोंमें विशिष्ट स्थान है। निःस्सन्देह यह पावन तीर्थ बुन्देलखण्डका छोटा सम्मेद-शिखर है। इस पावन भूमिपर दो ऐसे विशाल एवं महत्त्वपूर्ण उत्सव हुये हैं, जिनकी स्मृतियाँ हमेशा बनी रहेंगी। यह सौभाग्यकी बात है कि इन दोनों उत्सवोंमें माननीय डा० दरबारीलाल जी कोठिया वाराणसीका सान्निध्य रहा है, जिन्होंने अपने मधुर एवं प्रभावी प्रवचनोंसे उत्सवोंको गौरवान्वित किया है। भगवान महावीर २५००वाँ निर्वाणोत्सव वर्ष ७४-७५ भगवान महावीरका २५००वाँ निर्वाण-महोत्सव मनानेका सौभाग्य समस्त राष्ट्रको प्राप्त हुआ है। यह उत्सव एक महान उत्सव था, जो राष्ट्रीय स्तरपर तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर १९७४-७५में एक वर्ष तक विभिन्न कार्यक्रमोंके साथ मनाया गया । बुन्देलखण्डको मध्यप्रदेश एवं गुजरातके दो धर्मचक्रोंके स्वागतका लाभ मिला। भारतमें वह सौभाग्य द्रोणगिरिको ही प्राप्त हुआ, जहाँ उन धर्मचक्रोंका आगमन एक साथ एक ही समय हुआ। तीन मार्च ७५का वह अविस्मरणीय दिन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरिके इतिहास में स्वर्णाक्षरोंमें अंकित रहेगा। इस दिन मध्यप्रदेश एवं गुजरातके धर्मचक्र ८०० तीर्थ यात्रियोंके साथ क्षेत्रपर एक साथ पहुँचे । लगभग २०००० की जनताने अपूर्व उल्लास एवं श्रद्धाके साथ इन धर्मचक्रोंकी अगवानी की। ऐसे महत्त्वपूर्ण अवसरपर न्यायाचार्य श्रीमान् डा० दरबारीलालजी कोठिया वाराणसीकी उपस्थिति कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह आश्चर्य की बात है कि जिस प्रान्त बुन्देलखण्डको विशेषकर पावनभूमि सिद्धक्षेत्र रेशन्दीगिरि जिला छतरपुरको उनके जन्म देनेका गौरव प्राप्त हो उस प्रान्तकी समाज उनसे अपरिचित हो । परन्तु यह स्वाभाविक है कि बुन्देलखण्डको तो उनके जन्मका ही गौरव मिला । उनका कार्यक्षेत्र तो समस्त भारत रहा। अतः इस प्रांतकी समाजका सम्पर्क उनसे कैसे बनता। उनके द्वारा साहित्यके क्षेत्र में जो सेवा की गयी है विशेष कर जैन दर्शन एवं जैन न्यायके क्षेत्रमें, वह महत्त्वपूर्ण कार्य है। प्रान्तीय समाज डा० कोठियाजीकी विद्वत्तासे इस उत्सवके माध्यमसे परिचित हयी, जिसके कारण इनके गम्भीर चिन्तन एवं विद्वत्ताकी अमिट छाप प्रान्तीय समाजपर पड़ी तथा अपने प्रान्तके इस अपरिचित व्यक्तित्वसे परिचित होकर धन्य हो गयी। ४ मार्चको पूज्य क्षु० गणेशप्रसादजी वर्णीका शताब्दी-समारोह डा० दरबारीलालजी कोठियाकी अध्यक्षतामें सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। १९७७ का गजरथ-महोत्सव ___ इस विशाल गजरथ-महोत्सवके अवसरपर भी माननीय डा० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्यने पधारकर जनताको अपने प्रभावक प्रवचनोंसे लाभान्वित किया। अहिंसा-सम्मेलनमें डा० कोठियाजी २७ फरवरीको अहिंसा-सम्मेलन था, जिसमें सिक्ख, बौद्ध, वैष्णव, मुस्लिम, सम्प्रदायोंके विद्वानोंके साथ आदरणीय कोठियाजीने अहिंसा विषयपर जो गवेषणापूर्व व्याख्यान दिया उससे सभी श्रोता प्रभावित हुए और इनके गम्भीर चिन्तनकी प्रशंसा की गयी। २८ फरवरीको तपकल्याणक था। रात्रिमें द्रोण प्रान्तीय नवयुवक-सेवासंघ द्रौणगिरिका अधिवेशन सम्पन्न हुआ। अधिवेशन में मुख्य अतिथि स्वयं डा० कोठियाजी थे। अधिवेशनमें ही डा० कोठियाजीकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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