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________________ बम्बईका प्रवास बम्बईमें हमारा तीन दिनका प्रवास था । यहाँ श्रद्धेय प्रेमीजीने हमारा प्रेमपूर्ण आतिथ्य किया । आप समाज व साहित्यके पुराने सेवक हैं । आपने समाज व साहित्यपर सैकड़ों लेख लिखे हैं एवं अन्धेरेमें पड़े हुए सैकड़ों ग्रन्थों और ग्रंथकारोंको प्रकाशमें लाकर जैन इतिहासके निर्माणमें अपूर्व योगदान दिया है। जैनहितैषी व जैनमित्रका आपने जिस योग्यता और विद्वत्तासे सम्पादन किया उसकी समता आज समाजका प्रायः कोई पत्र नहीं रखता । अपने जीवनको अर्धशताब्दी आपने समाजसेवामें व्यतीत किया है । यद्यपि अब आप लगभग ७० वर्षके हो गये और काफी अशक्त रहने लगे हैं फिर भी समाजसेवाको चिन्ता अहर्निश रखते हैं। हमारी आपके साथ घंटों सामाजिक व साहित्यिक चर्चाएं हुई। उनमें हमने यही महसूस किया कि उन जैसे अध्यवसायी, लगनशील, समाजचिन्तक और साहित्यसेवी बहुत कम विद्वान् होंगे । जैन समाजमें कहीं कोई नई बात या हलचल हुई उससे समाजको परिचित करानेका प्रेमीजीने सदैव ध्यान रखा । किन्तु अब इस ओर किसीका भी लक्ष्य नहीं है। श्वेताम्बर समाजमें दिगम्बर समाज के सम्बन्धमें कितनी ही ऐसी बातें एवं घटनाएं हो जाती हैं जिनकी हमें खबर नहीं मिलती और कदाचित् मिल भी जाय तो बहुत पीछे मिलती है। दिगम्बर समाजको आज विरोधात्मक कार्यकी. ओर नहीं, विधेयात्मक कार्यकी ओर गतिशील होना चाहिए । उसका जो भी प्रयत्न हो विसंगठित एवं विरोधात्मक नहीं होना चाहिए। प्रेमीजीके सिवाय बम्बईमें हम जिन सज्जनोंके परिचयमें आये, उनमें धर्मनिष्ठ संघपति सेठ पूनमचंद घासीलालजी, सेठ निरंजनलालजी, मित्रवर पंडित विजयमूर्तिजी एम० ए०, दर्शनाचार्य और बन्धुवर पं० कुन्दनलालजी मैनेजर रायचन्द शास्त्रमालाके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। संघपतिजीके साथ हमारी उनकी अपनी कोठीमें निर्मापित श्री चैत्यालयजीमें धार्मिक चर्चाएं हई: जो काफी महत्त्वपूर्ण थीं। कालबादेवी में आपके द्वारा बहुत विशाल और आदर्श जिनमन्दिर बनवाया जा रहा है। इसमें लाखों रुपये लगेंगे। यह बम्बईकी कलापूर्ण कृतियोंमें एक अपूर्व एवं अन्यतम कृति होगी। इसे बनते हए दो-तीन वर्ष हो गये और कई वर्ष और लगेंगे। इसका प्रायः सारा ही संगमरमरका पत्थर विदेशी है और बहुत सुन्दर है। भूलेश्वरके श्री जिनमन्दिरजीमें हम प्रतिदिन पूजन करते थे। यहाँ पूजनादिका सुप्रबन्ध है । इसके प्रबन्धकोंमें एक धर्मप्रेमी सेठ निरंजनलालजी है । दिगम्बर समाज, जैन इतिहास-निर्माण और 'संजद' परके सम्बन्धमें हमारी आपसे विस्तृत और सौजन्यपूर्ण बातचीत हुई। हमने जैन इतिहास-निर्माणको आवश्यकता और 'संजद' पदकी स्थितिपर बल दिया। फलतः आपने इस सब वार्ताको बड़े महाराज (चा० च० पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी) से कहने और उनके पास जानेके लिए आग्रह किया। परन्तु समय न होनेसे हम महाराजके पास न जा सके। लेकिन उनके इस निमंत्रणको हमने स्वीकार कर लिया कि बादमें बुलानेपर हम अवश्य आवेंगे। पं० विजयमूर्तिजी और श्री कुन्दनलालजी हमारे सुपरिचित मित्रोंमें हैं । इन मित्रोंने हमें बम्बईके प्रसिद्ध स्थानों चौपाटी, इंडियागेट, समुद्रकी सैर, हिंडिंग-गार्डन, कमलानेहरू-गार्डन, रानी-बाग, अजायबघर आदि दिखाये । विशाल सड़कें, गगनस्पर्शी मकान, बड़े-बड़े मार्केट, शिष्टतापूर्ण रहन-सहन, समुद्रको सीनरी आदि बातें बम्बईकी अपनी खास विशेषताएं हैं। यहाँ नंगे शिर चलते हुए प्रायः कोई नहीं मिलेगा। वास्तवमें यहाँको शिष्टता एवं सभ्यता अन्य बातोंके साथ अवश्य ही दर्शकके चित्तको आकर्षित करती है और इन्हीं सब बातोंसे बम्बईको भारतका पहला एवं सुन्दर नगर कहलानेका गौरव प्राप्त है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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