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________________ मान्य छह द्रव्योंका संकलन तथा स्वरूपात्मक कथन किया है। इसके साथ ही पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों, नौ पदार्थों, दो प्रकारके मोक्षमार्गों, पाँच परमेष्ठियों और ध्यानका भी संक्षेपमें प्रतिपादन किया है । द्रव्योंका कथन मुख्य अथवा आरम्भमें होनेसे ग्रन्थका नाम 'द्रव्य संग्रह' रखा गया । यह शब्दपरिमाणमें लघु होते हुए भी इतना व्यवस्थित, सरल, विशद और अपने में पूर्ण है कि जैनधर्म-सम्बन्धी प्रायः सभी मोटी बातों का इसमें वर्णन आ गया है और उनका ज्ञान कराने में यह पूर्णतः सक्षम है । ध्यान रहे कि एक तत्त्वज्ञानीको निःश्रेयस अथवा सुखकी प्राप्तिके लिए जिनका सम्यक् ज्ञान आव श्यक है उन्हें सांख्यदर्शनमें २५ तत्त्वों, न्यायदर्शन में १६ पदार्थों, वैशेषिकदर्शनमें ६ पदार्थों तथा ९ द्रव्यों, मीमांसादर्शन में भाट्टोंके अनुसार ५ पदार्थों और ११ द्रव्यों तथा प्राभाकरोंके अनुसार ८ पदार्थों और ९ द्रव्यों, बौद्धदर्शनमें' ४ आर्यसत्यों एवं चार्वाक दर्शन में ४ भूततत्त्वोंके रूपमें स्वीकार किया गया है । परन्तु जैनदर्शन में छह द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों और नौ पदार्थोंके रूपमें उन्हें माना गया है । द्रव्य संग्रहकार ने उनके दार्शनिक विवेचनमें न जाकर केवल उनका आगमिक वर्णन किया है, जो प्रस्तुत ग्रन्थमें बड़ी सरलता से उपलब्ध है । (क) विषय इसमें कुल अण्ठावन (५८) गाथाएँ हैं, जो प्राकृत भाषा में रची गई हैं । यद्यपि इसमें ग्रन्थकारद्वारा किया गया अधिकारोंका विभाजन प्रतीत नहीं होता, तथापि ब्रह्मदेवकी संस्कृत टीकाके अनुसार इसमें तीन अधिकार और तीनों अधिकारोंके अन्तर्गत आठ अन्तराधिकार माने गये हैं । इनका विषय-वर्णन इस प्रकार है : १. यथा - 'सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः प्रकृतेर्महान् महतोऽहङ्कारोऽङ्कारात् पञ्चतन्मात्राण्युभयमिन्द्रियं तन्मात्रेभ्यः स्थूलभूतानि पुरुष इति पञ्चविंशतिर्गणः ।' - कपिल, सांख्यशास्त्र १-६१ । २. ' प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजन दृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्क निर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां ( पदार्थानां ) तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः ।' - गौतम अक्षपाद, न्यायसूत्र १-१-१ | ३. (अ) द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधर्म्याभ्य तत्त्वज्ञानानिन्नःश्रेयसम् ।' - कणाद, वैशेषिकदर्शन १-१-४ । वही १-१-५ । ( आ ) ( पृथिव्यापस्तेजो वायुराकाशं कालो दिगात्मा मन इति द्रव्याणि ।' ४. ( अ ) ' द्रव्यगुणकर्मसामान्याभावभेदेन पञ्चविधः पदार्थः । ' भाट्टमीमांसक, P. N. Pattabhirama shastri द्वारा Journal of the benares hindu university में प्रकाशित 'भट्टप्रभाकरयोर्मतभेद:' शीर्षक निबन्ध पृ० ३३१ । ५. (आ) पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशकालदिगात्मशब्दतमांसि द्रव्याण्येकादश ।' (इ) 'द्रव्यगुणकर्मसामान्यशक्तिसादृश्य संख्यासमवायभेदेनाष्टविधः पदार्थः । ' - प्राभाकरमीमांसक, वही पृ० ३३१ । (ई) 'पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशकालदिगात्ममनांसि नव द्रव्याणि । - प्राभाकरमीमांसक, वही पृ० ३३१ । Jain Education International -भाट्टमीमांसक, वही पृ० ३३१ । - ३१८ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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