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________________ द्रव्यसंग्रह और नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव द्रव्य-संग्रह प्रति-परिचय यहाँ द्रव्य-संग्रहभाषामें उपयुक्त प्रतियोंका परिचय दिया जाता है १. ब-यह बड़ौत (मेरठ)के दि० जैन पंचायती मन्दिरके शास्त्र-भण्डारकी प्रति है । आरम्भमें हमें यही प्रति प्राप्त हुई थी। इसमें कुल पत्र ४६ हैं। प्रथम पत्रका प्रथम पृष्ठ और अन्तिम पत्रका अन्तिम पृष्ठ खाली हैं-उनपर कोई लिखावट नहीं है। शेष ४५ पत्रों अर्थात् ९० पृष्ठोंमें लिखावट है । प्रत्येक पृष्ठकी लम्बाई ९.९ इंच और चौड़ाई ६-६ इंच है । प्रत्येक पृष्ठमें १३ लाइनें और एक-एक लाइनमें २८ से ३० तक अक्षर है। जिस पंक्तिमें संयुक्त अक्षर अधिक हैं उनमें २८ अक्षर हैं और जिसमें संयक्त अक्षर हैं उसमें ३० तक अक्षर है। उल्लेखनीय है कि इसमें प्रतिका लेखन-काल भी दिया हुआ है, जो इस प्रकार है _ 'इति द्रव्यसंग्रहभाषा संपूर्ण ।। श्री ।। संवत् १८७६ माघ कृष्ण ११ भौमवासरे लिखितं मिश्र सुखलाल बड़ौतमध्ये ॥ श्री शुभं मंगलं ददातु ।। श्री श्री ॥' -मुद्रित पृ० ८० । इस अन्तिम पुष्पिका-वाक्यसे प्रकट है कि यह प्रति माघ कृष्ण ११ मंगलवार सं० १८७६ में मिश्र सुखलालद्वारा बड़ौतमें लिखी गई है। यह प्रतिलेखन-काल ग्रन्थलेखन-काल (सं० १८६३) से केवल १३ वर्ष अधिक है-ज्यादा बादकी लिखी यह प्रति नहीं है। फिर भी वह इतने अल्पकाल (१३ वर्ष) में इतनी अशुद्ध कैसे लिखी गयी ? इसका कारण सम्भवतः वचनिकाकी राजस्थानी भाषासे लेखकका अपरिचित होना या प्राप्त प्रतिका अशुद्ध होना जान पड़ता है, जो हो । प्रतिदाता ला प्रेमचन्द्रजी सर्राफने प्रति-प्रेषक बा० लक्ष्मीचन्द्रजीको यह कहकर प्रति दी थी कि मूल बचनिका ज्यों-की-त्यों छपे-जिस भाण और जिन शब्दोंमें पं० जयचन्दजीने टीका की है वे जरूर कायम रहें। उनकी इस भावनाको ध्यानमें रखा गया है और पं० जयचन्दजीकी भाषा एवं शब्दोंमें ही वचनिका छापी गई है। इस प्रतिकी बड़ौत अर्थ सूचक 'ब' संज्ञा रखी है। २. व-यह ध्यावरके ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती-भवनकी प्रति है। इसमें कल पत्र ५७ अर्थात ११४ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पृष्ठकी लम्बाई मय दोनों ओरके हाँसियोंके १० इंच है । १,१ इंच पत्रके दोनों ओर हाँसियोंके रूपमें रिक्त है और मात्र ८ इंचकी लम्बाई में लिखाई है। इसी तरह चौड़ाई ऊपरनीचेके हाँसियोंसहित ५ इंच है और दोनों ओर ३,३ इंच खाली है तथा शेष ३१ इंच चौड़ाई में लिखाई है । एक पृष्ठमें १० और एक पत्रमें २० पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पंक्तिमें प्रायः ३०-३० अक्षर हैं प्रति पुष्ट और मजबूत है तथा शुद्ध और सुवाच्य है। इसमें बड़ीत प्रतिकी तरह प्रतिलेखन-काल उपलब्ध नहीं है । जैसाकि उसके अन्तिम पुष्पिका-वाक्यसे स्पष्ट है और जो मुद्रित पृ० ८० के फुटनोटमें दिया गया है । इस प्रतिका सांकेतिक नाम व्यावर-बोधक 'व' रखा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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