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________________ १. कार्यानुमान, २. कारणानुमान, ३ गुणानुमान, ४ अवयवानुमान, ५. आश्रयो - अनुमान १. कार्यानुमान - कार्य से कारणको अवगत करना कार्यानुमान । जैसे - शब्द से शंखको, ताडनसे भेरीको, ढाडनेसे वृषभको, केकारवसे मयूरको, हिनहिनाने ( ह्रषित) से अश्वको, गुलगुलायित ( चिधाड़ने ) से हाथीको और घणाघणायित ( घनघनाने) से रथको अनुमित करना । " २. कारणानुमान - कारणसे कार्यका अनुमान करना कारणानुमाब है । जैसे- तन्तुसे पटका, वीरण से कटका, मृत्पिण्डसे घड़ेका अनुमान करना । तात्पर्य यह कि जिन कारणोंसे कार्योंकी उत्पत्ति होती है, उनके द्वारा उन कार्योंका अवगम प्राप्त करना 'कारण' नामका 'सेसवं' अनुमान है । २ ३. गुणानुमान - गुणसे गुणीका अनुमान करना गुणानुमान है । यथा गन्ध पुष्पका, रससे लवणका, स्पर्शसे वस्त्रका और निकषसे सुवर्णका अनुमान करना 13 ४. अवयवानुमान -- अवयवसे अवयवीका अनुमान करना अवयवानुमान है । यथा-सींगसे महिषका, शिखासे कुक्कुटका, शुण्डादण्ड से हाथीका, दाढ़से वराह्का, पिच्छसे मयूरका, लांगूलसे वानरका, खुरासे अश्वका, नखसे व्याघ्रका, बालाग्र से चमरीगायका, दो पैरसे मनुष्यका, चार पैर से गौ आदिका, बहुपादसे कनगोजर (पार) का, केसर से सिंहका, ककुभसे वृषभका, चूड़ीसहित बाहुसे महिलाका, बद्धपरिकरतासे योद्धाका, वस्त्रसे महिलाका, धान्यके एक कणसे द्रोण पाकका और एक गाथासे कविका अनुमान करना। ५. आश्रयी अनुमान - आश्रयीसे आश्रयका अनुमान करना आश्रयी अनुमान है । यथा - घूमसे अग्नि का, बलाकासे जलका, विशिष्ट मेघोंसे वृष्टिका और शील- समाचारसे कुलपुत्रका अनुमान करना । " शेषवत् के इन पाँचों भेदोंमें अविनाभावी एकसे शेष (अवशेष ) का अनुमान होनेसे शेषवत् कहा है । माया पुत्तं जहा नट्टं जुवाणं पुणरागयं । काई पच्चभिजाणेज्जा पुव्वलिंगेण केणई || तं जहा—खेतेण वा, वण्णेण वा, लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा । से तं पुष्वदं । से किं तं सेसवं ? सेसवं पंचविहं पण्णत्तं । तं जहा - १. कज्जेणं, २. कारणेणं, ३. गुणेणं, ४. अवयवेणं, ५ आसणं । - मुनि श्री कन्हैयालाल, अनुयोगद्वारसूत्र मूलसुत्ताणि, पृ० ५३९ । १. कज्जेणं-संखं सद्देणं, भेरि ताडिएणं, वसभं ढक्किएणं, मोरं किंकाइएण, हयं हेसिएणं, गयं गुलगुलाइएण, रहं घणघणाइएणं, से तं कज्जेणं । - अनुयोग० उपक्रमाधिकार प्रमाणद्वार, पृष्ठ ५३९ । २. कारणेणं - तंतवो पडस्स कारणं ण पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं ण कडो वीरणाकारणं, मिप्पिडो घडस कारणं ण घडो मिप्पिडकारणं, से तं कारणं । -- वही, पृष्ठ ५४० । ३. गुणेणं - - सुवणं निकसेणं, पुप्फं गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसायए णं, वत्थं फासेणं, से तं गुणेणं । - वही, पृष्ठ ५४० । ४. अवयवेणं - महिसं सिगेणं, कुक्कुडं सिहाएणं, हत्थि विसासेणं, वराहं दाढाएणं, मोरं पिच्छेणं, आसं खुरेणं, वग्घं नहेणं, चर्मार बालग्गेणं, वाणरं लंगुलेणं, दुपयं मणुस्सादि, चउप्पयं गवमादि, बहुपयं गोमि आदि, सीहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं, महिलं वलयबाहाए, गाहा - परिभरबंधेण भडं जाणिज्जा, महिलियं वस्सेणं, सित्थेण दोणपागं, कवि च एक्काए गाहाए, से तं अवयवेणं । - वही, पृष्ठ ५४० । ५. आसएणं - अग्गिं घूमेणं, सलिलं बलागेणं, बुट्ठि अब्भविकारेणं, कुलपुत्तं सीलसमायारेणं । सेतं आसएणं । से तं सेसवं । -- अनुयोग० उपक्रमाधिकार प्रमाणद्वार, पृष्ठ ५४०-४१ Jain Education International - २५५ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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