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________________ 'वमुक्तिका सीधा मार्ग है । भूतयज्ञ-- पशुयज्ञ तुम्हारी कर्मविमुक्तिका मार्ग नहीं है, प्रत्युत कर्म-युक्तिका मार्ग है, दुर्गतिका कारण है । अतः यज्ञोंमें किया गया पशु-वध धर्म नहीं है। बौद्धोंका आत्माको सर्वथा क्षणिक मानना प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाधित है। प्रत्यक्षसे समस्त पदार्थ स्थिर स्थूल प्रतीत होते हैं । "असतका उत्पाद नहीं होता है और सतका विनाश नहीं होता" अर्थात जो नहीं है वह उत्पन्न नहीं हो सकता और जो है-जिसका सद्भाव है उसका सर्वथा विनाश-अभाव नहीं हो सकता । इस सिद्धान्तके अनुसार आत्मा जब सद्-सद्भावरूप है तो उसका सर्वथा विनाश नहीं हो सकता। पर्यायरूपसे नाश होनेपर भी द्रव्यरूपसे उसका अवस्थान बना ही रहता है। अतः आत्माकी अनित्यताको लेकर वैदिक हिंसाका निषेध नहीं हो सकता । उसका तो उपर्युक्त ढंगसे ही निषेध हो सकता है । इस प्रकार भगवान् महावीरने ऐसी-ऐसी अनेकों समस्यायें हल की और विश्वको समभाव द्वारा सन्मार्गपर लगाया। भगवान् महावीरके ही सिद्धान्तोंपर महात्मा गांधी चले और समस्त राष्ट्रको चलाया है। ___ सत्य और अहिंसा आत्माकी अपनी विभूति हैं। उन्हें हम भूले हुए हैं। भगवान् महावीर द्वारा प्रदर्शित सत्य और अहिंसाका आलोक स्थायी आलोक है। उसे हमें पूर्ण नैतिकताके साथ प्राप्त करना चाहिये। हमें भगवान् महावीरके पूर्ण कृतज्ञ होना चाहिये तथा उनके आदर्शों-उसूलों--सिद्धान्तोंका हार्दिकतासे अनुशीलन करना चाहिये। जाजरक Melle Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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