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________________ वाराणसीसे बहती हुई भोपाल आ गई है। अवगाहनके लाभसे वंचित नहीं रहना चाहिए। निश्चय और व्यवहारनयोंके विषयमें एक न्यायाचार्यसे बढ़कर मार्गदर्शक और कौन हो सकता है ? मैं अपने शोधकार्यकी रूपलेखा लेकर अवकाशके समय उनके पास पहुँचा और अपने स्वर्गीय पिताश्रीके माध्यमसे परिचय दिया। वे हर्षसे प्रफुल्लित हो उठे । गले लगा लिया। शोधकार्यकी रूपरेखा उन्होंने बड़े गौरसे देखी। वे प्रसन्न हए किन्तु मेरे द्वारा निष्पन्न होनेसे उसमें अनुभवहीनताजन्य दोष थे ही । न्यायाचार्यजीने अपना अमूल्य समय देकर उसे परिमाजित कर दिया। दूसरी बार दर्शनका अवसर मिला सागरमें १९८० में, जब परमपूज्य आचार्य विद्यासागरजी महाराजके सान्निध्यमें षट्खण्डागमकी वाचना चल रही थी। मैं अपना शोध-प्रबन्ध पूरा कर चुका था। डॉ० दरबारीलालजी कोठियाको मैंने वह शोधप्रबन्ध दिखलाया । उसे देखकर उनके नेत्र हर्ष और स्नेहसे चमक उठे । उन्होंने मेरी पीठ थपथपायी और सफलताका आशीर्वाद दिया। इस प्रकार पूज्य आचार्य विद्यासागरजी महाराज और श्रद्धय डॉ० दरबारीलालजी कोठियाके दुर्लभ, अमूल्य एवं मंगलमय मार्गदर्शनसे मेरा शोधप्रधन्ध पी-एच० डी० की उपाधिके लिए स्वीकृत होने योग्य बना। न्यायाचार्यजीने अपने शोधपूर्ण लेखनसे जैनन्यायके कोशको समृद्ध किया है। उनके द्वारा दीर्घकाल तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयका जैन-बौद्धदर्शन विभाग अलंकृत हुआ है। किन्तु आपके व्यक्तित्वको महान् बनाने वाले जो अन्तरंग तत्त्व हैं वे हैं आपके आत्माकी ऊँचाई, हृदयकी विशालता, सरल और स्नेही अन्तस, जिसमें छोटे-बड़े, विद्वान-अविद्वान सभीको स्थान मिलता है। आप दीर्घायु रहकर जैनसाहित्यको समृद्ध करते हुए जिनशासन की प्रभावना करते रहें यह मंगलकामना है। मूर्धन्य विद्वान कोठियाजी पं० हीरालाल जैन 'कौशल', देहली श्री कोठियाजी समाजके मूर्धन्य विद्वानोंमें हैं और उनका अपना एका विशिष्ट स्थान है। साहित्य और समाजकी इन्होंने महती सेवा की है । आपने अनेक पदोंपर रहकर अपने उत्तरदायित्वको बड़ी निष्ठा और लगनसे निभाते हुए कई संस्थाओंमें तो नतन जागृति ला दी है। श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला व शोधसंस्थानके लिए किया गया आपका कार्य अविस्मरणीय है। इसके साथ ही कोठियाजी अत्यन्त सहदय, उदार, सरल तथा मिलनसार व्यक्ति हैं। वे मित्रोंके सच्चे मित्र हैं। अपने साथियों और छात्रोंको आगे बढ़ानेकी उनकी अपनी विशेषता है। सम संस्थाओं और जरूरतमन्दोंकी आप दिल खोलकर सहायता करते रहते हैं। आप अच्छे विचारक, परिश्रमी तथा अध्ययनशील विद्वान् है । अध्ययन और लेखन आपके रुचिकर विषय है, किसी विषयमें निष्कर्ष पर पहुँचनेसे पहले उसको तह तक पहुँचना उनका स्वभाव है। श्री कोठियाजीका अभिनन्दन उनकी विद्वत्ता और दीर्घकालीन सेवाओंका अभिनन्दन है। श्री कोठियाजी स्वस्थ रहें और दीर्घ आयु प्राप्त कर समाज व साहित्यको इसी प्रकार सेवामें रत रहें, ऐसी मंगल-कामना है। -७८ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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