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________________ बहु आयामी व्यक्तित्वके धनी डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर, नागपुर एक दूर-दराजके गाँव नैनागिरि (छतरपुर) म० प्र० में जनमे हीरे-से बालकने अनेक कटीली बाड़ोंको पारकर साढ़मल और वाराणसीके विद्यालयोंमें अपनी सृजनात्मक कारयित्रो और भावयित्री प्रतिभाको सुदढ संकल्प और सामयिक निर्णयके आधारपर अच्छी तरह विकसित किया। परिपक्वता और वास्तविकता की अनेक सीढ़ियोंको पार करनेवाले उसी बालकको हो विद्वत तथा जन समाजने कालान्तर में न्यायाचार्य डॉ० कोठियाके नामसे पहचाना । यह उनके परम पुरुषार्थकी अमिट कहानी है। शालीनताकी प्रतिमूर्ति, करुणाद्रताका उत्स और यथार्थवादी चिन्तक डॉ० कोठियाजीका सारा जीवन धार्मिक और आत्मिक पहलूका एक अनूठा सच्चा दस्तावेज रहा है, जिसने अनेक भले-विसरे निर्धन असहाय छात्रोंको सशक्त अर्थव्यवस्था देकर | दिलाकर उनके जीवन में प्रगति और खुशहालीकी नई खिड़कियाँ खोलीं, जीवनकी यथार्थता तक पहुँचनेका पाथेय दिया। यह उनकी सामाजिकता, धार्मिकता और सामुदायिक चेतनाका आदर्श है। संस्थाएँ खड़ी कर देना तो सरल है। पर उन्हें हरी-भरी बनाये रखना अत्यन्त कठिन है। इसके लिए निःस्वार्थ त्याग, कठोर संकल्प, साहसिक सहिष्णुता और सामञ्जस्यपूर्ण गुणवत्ता जैसे कतिपय तत्त्वोंका आकलन निहायत आवश्यक है । गुरुवर्य कोठियाजी ऐसे तत्त्वोंके निर्मम धनी है। उनके इन्द्रधनुषी व्यक्तित्वका सहारा पाकर विद्वत् परिषद्, वर्णों जैन ग्रन्मथाला और वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट जैसी संस्थाओंने कायाकल्पका संवरण किया है, वे हरी-भरी हुई हैं । यह पंडितजीकी सांस्कृतिक चेतना, कृतज्ञता और वस्तुनिष्ठाका सुखद परिणाम है । अतः वे व्यक्ति नहीं, संस्थान है। दर्शन और न्याय जैसे शुष्क और कठोर विषयका चर्वण करनेवाले इस मिष्टभासी मनीषीने अपनी सृजनात्मक शक्तिको अध्ययन-अध्यापन और शोधक्षेत्रमें भी भरपूर उड़ेला और वहाँ प्रभावोत्पादक गहन दार्शनिक विचारधाराको तुलनात्मकताकी पृष्ठभूमिमें प्रस्तुत कर अध्ययन-मननके क्षेत्रमें पुराने प्रतिमानोंको ध्वस्त किया और नये मानोंके संबलपर मौलिकताको प्रस्थापित किया। उन्होंने अनेक ग्रन्थोंका संपादन और प्रणयन कर सरस्वतीके भण्डारको समृद्ध किया, यह उनकी साहजिक प्रतिभा, बौधिक चिन्तन और गहन पाण्डित्यका फल है। आपाधापीसे दूर रहनेवाले इस चुम्बकीय व्यक्तित्वकी सौहार्दभरी व्यावहारिकताने नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ीके बीच अंकित खाईको पाटनेका जो अथक प्रयत्न किया है और उसको जीवन-गंगाको एक नये उत्साह और निदर्शनके साथ जो प्रवाहित किया है, गतिशील बनाया है वह अपने आपमें विचक्षणता और तेजस्विताका प्रतीक है। तालमेल बैठानेकी अद्भुत प्रतिभामें डॉ० कोठियाजीका बन्धुत्वतरु एक विराट कल्पतरुके रूपमें खडा हो जाता है। पुरजोश बहसके दौरान आपके व्यावहारिक तर्क गहराईको छु जाने वाले होते है और वे विषयकी निश्छल और निरावरण अभिव्यक्ति करके ही विराम लेते हैं। अतः वे भारतीय दार्शनिक परम्परामें जीते जागते नक्षत्र है। ऐसे बहु आयामी व्यक्तित्वके धनी गुरुवर्य डॉ० कोठियाजीके अभिनन्दनको प्रक्रियामें श्रद्धा-सुमनके इन दो शब्दोंकी पावन-भेंट मणिमालाके गम्फनका कार्य करेंगे। आपका व्यक्तित्व और कर्तत्व और अधिक प्रशस्त हो, इसी विनम्र भावनाके साथ...' - ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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