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________________ । ६३ इस प्रसंग में प्रयोग किया गया है। अपनी स्वाभाविकता काचित्कराद्रप्रतिकर्मभङ्गभयेन हित्वा पतदुत्तरीयम् । तथा मामिव ता के कारण, कतिराज का यह वर्णन संस्कृत- मञ्जीरवाचालपदारविन्दा द्रुतं गवाक्षाभिमुखं चचाल । साहित्य के सर्वोत्तम प्रभातवर्णनों से टक्कर ले सकता है। १०.१३ ___ नायक को देखने को उत्सुक पौर युवतियों के सम्भ्रम चरित्रचित्रण तथा तजन्य चेष्टाओं का वर्णन करना संस्कृत-महाकाव्यों नेमिनाथ महाकाव्य के संक्षिप्त कथानक में पात्रों की की एक अन्य बहुप्रचलित रूढि है, जिसका प्रयोग नेमिनाथ संख्या भी सीमित है। कथानायक नेमिनाथ के अतिरिक्त काव्य में भी हुआ है । बौद्ध कवि अश्वघोष से प्रारम्भ उनके पिता समुद्रविजय, माता शिवा देवी, राजीमती, होकर कालिदास, माघ, हर्ष आदि से होती हुई यह काव्य उग्रसेन, प्रतीकात्मक सम्राट मोह तथा संयम और दूत कैतव रूढ़ि कतिपय जैन कवियों की रचनाओं में भी दृष्टिगत ही महाकाव्य के पात्र हैं । परन्तु इन सब की चरित्रगत होती है। अश्वघोष तथा कालिदास का यह वर्णन, अपने विशेषताओं का निरूपण करने से कवि को समान सफलता सहज लावण्य से चमत्कृत है। माघ के वर्णन में, उनके नहीं मिली। अन्य अधिकांश वर्णनों के समान, विलासिता की प्रधानता नेमिनाथ है। उपाध्याय कीतिराज का सम्भ्रम चित्रण यथार्थता से जिनेश्वर नेमिनाथ काव्य के नायक हैं। उनका चरित्र ओतप्रोत है, जिससे पाठक के हृदय में पुरसुन्दरियों की पौराणिक परिवेश में प्रस्तुत किया गया है जिससे उनके चरित्र स्वरा सहसा प्रतिबिम्बित हो जाती है। नारी के नीवी- के कतिपय पक्ष ही उद्घाटित हो सके हैं और उसमें कोई स्खलन अथवा अधोवस्त्र के गिरने का वर्णन, इस सन्दर्भ नवीनता भी दृष्टिगत नहीं होती। वे देवोचित विभूति में, प्रायः सभी कवियों ने किया है । कालिदास ने अधी- तथा शक्ति से सम्पन्न हैं। उनके धरा पर अवतीर्ण होते रता को नीवीस्खलन का कारण बता कर मर्यादा की रक्षा हो समुद्र विजय के समस्त शत्रु म्लान हो जाते हैं । दिक्कुकी है। माघ ने इसका कोई कारण नहीं दिया जिससे मारियाँ उनका सूतिकर्म करती हैं तथा जन्माभिषेक सम्पन्न उसको नायिका का विलासी रूप अधिक मुखर हो गया करने के लिये स्वयं सुरपति इन्द्र जिनगृह में आता है। है । नग्न नारी को जनसमूह में प्रदर्शित करना जैन यति पाञ्चजन्य को फूंकना तथा शक्तिपरीक्षा में षोडशकला सम्पन्न की पवित्रतावादी वृत्ति के प्रतिकूल था, अतः उसने इस श्रीकृष्ण को पराजित करना उनकी अनुपम शक्तिमत्ता के रूढि को काव्य में स्थान नहीं दिया। इसके विपरीत काव्य प्रमाण हैं। में उत्तरीय-पात का वर्णन किया गया है। शुद्ध नैतिकता नेमिनाथ वीतराग नायक हैं। यौवन की मादक वादी दृष्टि से तो शायद यह भी औचित्यपूर्ण नहीं किन्तु अवस्था में भी वेषयिक सुखभोग उन्हें अभिभूत नहीं कर नीवीस्खलन की तुलना में यह अवश्य ही क्षम्य है, और पाते । कृष्णपत्नियाँ नाना प्रलोभन तथा युक्तियाँ देकर उन्हें कवि ने इसका जो कारण दिया है उससे तो पुरसुन्दरी पर वैवाहिक जीवन में प्रवृत्त करने का प्रयास करती हैं, किन्तु कामुकता का दोष आरोपित ही नहीं किया जा सकता। वे हिमालय की भाँति अडिग तथा अडोल रहते हैं । उनका की तिराज की नायिका हाथ के आर्द्र प्रसाधन के मिटने दृढ़ विश्वास है कि वैषयिक सुख परमार्थ के शत्रु है। के भय से उत्तरीय को नहीं पकड़ती, और वह उसी अवस्था उनसे आत्मा उसी प्रकार तृप्त नहीं हो सकती जैसे जलराशि में गवाक्ष की ओर दौड़ जाती है। से सागर अथवा काठ से अग्नि । उनके विचार में धौषधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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