SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिसके पीछे दो व्यक्ति नृत्य करते हुए एवं दो व्यक्ति वाद्य- स्थित साधु का नाम पं० ब्रह्मचन्द्र है। पृष्ठ भाग में दो मंत्र लिए खड़े हैं। जिनालय के दाहिनी ओर श्री जिनदत्त- राजपुरुष हैं जिनका नाम चित्र के उपरिभाग में "सहणप सूरि जो की व्याख्यान सभा है। आचार्यश्री के पीछे दो (ल' व अनंग लिखा है । साध्वीजी के सामने भी भक्त श्रावक एवं एक शिष्य नरपति राजा कुमारपाल बैठा स्थापनाचार्य और उनके समक्ष दो श्राविकाएँ हाथ जोड़े हुआ है। राजा के साथ रानी व दो परिचारक विद्यमान खड़ी हैं । गणधरसाईशतक वृहद्धृत्ति के अनुसार पार्श्वनाथ हैं । आचार्य श्रींजिनदत्त सूरिजी का परिचय चित्रकार ने के नदफणों की प्रथा श्रीजिनदतसूरिजी से हो प्रचलित हुई "श्रीयुगप्रधानागम श्रीमजिनदत्त सूरयः ॥६॥ लिखा है। थी। नरभट में नवफणा पार्श्वनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा जिनालय के बाँयें तरफ श्रीगुणसमुद्राचार्य विद्यमान हैं सूरिजी ने की थी। वह जिनालय आगे चलकर महातीर्थ जिनके सामने स्थापना चारंजी व चतुर्विध संघ है। त्रि के रूप में प्रसिद्ध हो गया। INHETANS सोमचन्द्राणि (श्रीजिनदत्तमुरि) और गुणसमुद्राचार्य [ शंकरदान ना हटा कलाभवन, बीकानेर से ] Iood आज्ञानुवर्तिनी साध्वी नयश्रो और नयमती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy